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________________ १२६ मेरे कथागुरुका कहना है करनेका क्रम भी असुर-गुरुने प्रारम्भ कर दिया । उसको कथा पुराणविदित है। आजको भोर अपने एक अनुपचारित व्रणके नीचे मुझे भी उसो अमृतका एक कण मिला है और तभी मेरे परम कृपालु महोपचारकने इतिहास-पुराणकी यह अबतक अलिखित, अति गुह्य किन्तु चिर सत्य कथा सुनायी है। कौन जाने जीवनमें घटित प्रत्येक व्रणका अभिप्राय ही यह हो कि बाह्य ओषधि द्वारा उसका उपचार करनेसे पहले उसके नीचे छलके परम जीवन-प्रद अमृत-बिन्दुको खोज लिया जाय ।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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