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________________ सात अरबका बिल एक व्यापारीके दो लड़के थे। बड़ा लड़का व्यवसाय कुशल, परिश्रमी और बहुत ही साफ़ लेन-देन रखने वाला था; व्यापारमें न्याय और ईमानदारीका निर्वाह उसकी सबसे बड़ी विशेषता थी। लेकिन छोटा लड़का आलसी और निकम्मा था। उसके पास केवल एक गुण था, संगीत और कण्ठ-स्वरका। पिताकी मृत्युके बाद बड़े लड़केने सारा कारबार सम्हाल लिया। पिताके समयमें जो थोड़ी-बहुत व्यापारिक अनीति चलती थी उसे उसने एकदम बन्द कर दिया। अपने व्यापारियोंसे पिता-द्वारा लिये गुप्त लाभका धन उसने उन्हें लौटा दिया और जीवित तथा मरे हुए लेनदारोंके अज्ञात अथवा छिपाये हुए ऋण भी उन्हें या उनकी सन्तानोंको चुका दिये। ऐसा करनेके लिए उसे पिताके चलाये हुए दान और परोपकारके खाते भी बन्द कर देने पड़े। वास्तवमे वह अत्यन्त शुद्ध एवं आत्म-निर्भर चरित्रका व्यक्ति था; किसीका ऋणी या अनुगृहीत होना उसे स्वीकार नहीं था और याचक तथा उपकृत प्रकारके मनुष्योंको वह नीची दृष्टिसे देखता था । अपनी इस प्रवृत्तिके कारण वह सामाजिक संसर्गसे बहुत कुछ अलग पड़ गया था। उधर उसके छोटे भाईका हाल बिलकुल विपरीत था ।, उसकी संगीतकलाके प्रशंसकोंका एक वर्ग उसे घेरे रहता था। वह बहुतोंका ऋणी हो गया था और उस ऋणको उसके बड़े भाईने चुकाया था। बड़े भाईके आदेशपर लोगोंने उसे ऋण देना बन्द कर दिया था और तबसे वह अपने घरकी अवहेलना कर मित्रों और प्रशंसकोंको रोटियोंपर ही पलता था । छोटे भाईकी इस प्रवृत्ति पर बड़ेको बड़ा क्षोभ था, किन्तु वह उसे सुधारनेमें असफल हो चुका था।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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