________________
१००
मेरे कथागुरुका कहना है
महाराजको कुमारके इस उपार्जनसे संतोष नहीं हुआ। उनके संकेत पर वह पुनः तपस्याके लिए चला गया।
सौ वर्षको तपस्याके पश्चात् उसकी साधना सफल हुई। ब्रह्माजीने प्रकट होकर अपने पूर्वदत्त वरदान, राजकुमारके बोधितत्त्वपर एक झीना-सा आवरण-कवच डाल दिया। ऐसा करते ही राजकुमारका शरीर अनन्त सौन्दर्य-सम्पन्न एक षोडशवर्षीय कुमारका हो गया। ____वह अपने नगरको लौटा। उसके रूपाकर्षणने देशके नर-नारियोंको मोह लिया। उसके अधरोंकी मुसकान और दृष्टिके संकेतको जोहनेके लिए असंख्य नर-नारियोंके मन और नयन उसके चारों ओर मँडराने लगे।
किन्तु मनुष्योंमे बुझी और अनजगी चेतनावाले व्यक्तियोंका एक बड़ा वर्ग ऐसा भी था कि जिसे इस रूप निमन्त्रणको परवाह नहीं थी। ऐसे वर्ग के लिए राजकुमारके रूपमें कोई प्रेरणा नहीं थी।
महाराजको कुमारके इस उपार्जनसे भी सन्तोष नहीं हुआ। उनके संकेतपर वह फिर तपस्या करने निकल गया ।
अबकी बार दस वर्षकी तपस्यासे ही उसकी साधना पूरी हो गयी। ब्रह्माजीने प्रकट होकर अपने पूर्वदत्त वरदानपर एक और आवरण डाल दिया। ऐसा करने ही राजकुमारकी आंखों और हुस्तांगुलियोंसे अजस्र शक्तिको तेजोमयी धाराएं प्रवाहित होने लगों। इस तेजको अपने भीतर निहित रखने और इच्छानुसार भृकुटि-विलासमात्रसे बाहर प्रवाहित करने को क्षमता भी शीघ्र ही उसमें आ गयी।
वह पुनः अपने नगरको लौटा। महाराजने आगे बढ़कर नगर-द्वार पर उसका सोल्लास अभिनन्दन किया।