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प्रेम-रास
घरमें भागवतकी कथा होती थी । सुनने निकल आती थीं । चूहे अधिक बिलोंमें ही पड़े रहते थे ।
एक भक्त गृहस्थके घरमें चूहों का एक बड़ा कुटुम्ब रहता था । उस मूषक - कुटुम्बकी चुहियाँ भी उस कथाको आलसी और अभक्त थे, वे अपने
भागवत की कथाका उन चुहियोंपर गहरा प्रभाव पड़ा । कृष्णके प्रति गोपियोंके प्रेमका रंग उनपर ऐसा चढ़ा कि वे भी किसी परम सुन्दर मनमोहन के साथ रास - विलासकी कामना करने लगीं ।
विधाताने उनकी प्रार्थना सुनी और कामना पूरी कर दी । एक अति सुन्दर, नवल किशोर चूहा एक सुबह उनके बीच कहींसे आ गया । चुहियोंने अपने बिलोंसे झांककर उसे देखा और उसपर मोहित हो गई ।
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अगली रातकी भागवत कथा के पश्चात् जब घरके स्त्री-पुरुष सो गये, आधीरात के समय इस चूहेने ढेर लगायी । सभी चुहियाँ अपने बिलोंसे निकल कर इसके पास घिर आईं और उसके साथ प्रेम रास रचानेके लिए उसके सकेतकी प्रतीक्षा करने लगीं ।
किन्तु इस नये चूहेने कहा
'सुन्दरियो, मैं तुम्हारे साथ प्रेम-रास करनेके लिए बहुत उत्सुक था, बिना, तुम स्वयं उलटकर देख जब तक तुम मेरी और अपनी
किन्तु तुम्हारी सुन्दर पूँछें कहाँ हैं ? उनके लो, तुम कितनी असुन्दर लगने लगी हो । दृष्टिमें सम्पूर्ण एवं सुन्दर न हो तब तक प्रेम-रास कैसे रचाया जा सकता है ?” चुहियोंने पीछे घूमकर अपने शरीरोंको देखा, उनकी दुमें सचमुच कटी
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^ हुई थीं । बिलोंसे प्रेमाभिसारके लिए निकलते समय वे उनके पतियोंकी गर्दनों में फँसी हुई टूटकर वहीं रह गई थीं ।
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