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मेरे कथागुरुका कहना है नहीं पहुँचाई और उसके लिए यथेष्ट भोजन छोड़कर आस-पासका शेष भाग उसने प्रेम-पूर्वक उसके साथ ही खाया। तभीसे वह इस गिद्धको अपना मित्र मानती आ रही है। ___ सभी गिद्धोंने आश्चर्यचकित दृष्टिसे इस मक्खोको देखा और इसकी बात सुनी। स्वयं गिद्ध सरदारको भी इस मक्खीके परिचय या मित्रताका कोई ज्ञान नहीं था। मक्खीकी बात छोटे मुंह बहुत बड़ी वात थी; ऐसी बराबरीका दावा गिद्धोंके लिए अत्यन्त निरादरपूर्ण और अपमानजनक था। . एक गिद्धने प्रस्ताव किया कि उसे अनुमति दी जाय कि वह अपनी चोंचके हल्के प्रहारसे इस मक्खीको समाप्त कर इसे इसके अपमान-जनक कथनको उचित दण्ड दे दे। ..' • कई गिद्धोंने उसके प्रस्तावका समर्थन किया। किन्तु नये गिद्ध सरदार ने कहा
'इस मक्खीने यदि अपमान किया है तो सबसे सीधा मेरा ही किया है। मैं चाहता हूँ कि आप इसे अभी ऐसा दण्ड न दें, और इसकी कथित बड़ी सेवाओंके प्रदर्शनका कुछ अवसर देनेके बाद ही इस दिशामें कुछ निश्चय करें।
म अगली सुबह हो उन्हें भोजन-यात्राके लिए सौ कोस दूर एक दूसरे वन खंडकी ओर प्रस्थान करना था। उनके अग्रचर दूत एक बड़े हाथीके शवका समाचार वहाँसे लाये थे। in 'अगली दोपहरको हम लोग सौ कोस दूर एक दूसरे वनमें भोज करेंगे। आशा है तुम वहां हमें अपनी बड़ी सेवाएं दे सकोगी।' उसी पहले गिद्धने अपने क्रोधको भीतर-ही-भीतर दबाकर व्यंग्य किया।
मिस्सन्देह, तुम मेरे छोटे पंखोंको देखकर समझते हो कि मै कल सुबहसे दोपहर तक सो कोस दूर भी नहीं जा सकती ! लेकिन पंखोंसे