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कुत्तोंके लिए
७५ अगली सुबह दूतके पीछे-पीछे वह दार्शनिक राज-दरबारमें उपस्थित हो गया।
राजाका सम्मेलन उसी दिनसे बड़े धूम-धामसे प्रारम्भ हुआ। गुणी और विद्वान्-जनोंको राजाने विविध प्रकारके सम्मानों और अलंकारोंसे समृद्ध किया और उन्होंने भी अपने गुण और कलाका कोई कौशल राजाके प्रशस्ति-गानमे उठा नहीं रक्खा। सम्मेलन बहुत सफल रहा। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि उस देरसे आये हुए दार्शनिकका भी राजाने यथेष्ट, बल्कि यथेष्ट से भी कुछ अधिक ही सत्कार किया। ___ अगले वर्ष राजाने फिर वैसा ही सम्मेलन बुलाया । गुणी एवं प्रतिष्ठित जनोंको वैसे ही निमंत्रण-पत्र भेजे गये। उस दार्शनिककी बात राजाको याद थी इसलिए उसने नियमित निमन्त्रण पत्र की भाषामें अन्न, वस्त्र और द्रव्यकी दक्षिणा वाली बात उसको भेजे जानेवाले पत्र में बढ़वा दी। वनसे राजनगर तक आनेके लिए कोई सार्वजनिक यातायातका साधन सुलभ नहीं था, इसलिए इस वनवासी दार्शनिकके लिए अबकी बार एक रथ भी राजाने दूतके साथ भिजवा दिया।
सम्मेलन प्रारम्भ होनेके एक दिन पूर्व ही देशका समस्त गुणी एवं प्रतिष्ठित वर्ग राजनगरमें जुड़ गया । इस दार्शनिकका रथ भी ठीक समय पर राजदरबारकी ड्योढ़ीपर पहुँच गया। राजाके संकेतपर कुछ राजमन्त्रिजन उसका स्वागत करनेके लिए आगे बढ़े। किन्तु रथका पर्दा उठाने पर उसमें उस दार्शनिकके बदले केवल तीन अल्पवयक कुत्ते निकले। उनमेसे एकके गलेमें एक पत्र बँधा हुआ था। उसमे लिखा था
'श्रद्धेय राजन्, गत वर्ष मेरे आश्रममे जन्मे हुए ये तीन कुक्कुर-शावक आपके पिछले वर्षके निमन्त्रणके समय बहुत छोटे थे और आपके राजनगर तककी यात्रा नहीं कर सकते थे। अन्न, वस्त्र और द्रव्यकी आवश्यकता मुझे इन्हींके भोजन-छादनके लिए थी और अब भी है। अब ये इतने बड़े हो गये हैं कि आपके नगर तक जा सकते हैं और आपने कृपा-पूर्वक वाहनके