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न्यायकी चोरी
एक सुबह राजमहलके द्वारपर राजाके नाम एक पत्र पड़ा हुआ पाया गया। पत्र एक चोरका था, जिसमें सूचना दी गई थी कि वह उसी रात राजमहलमें चोरी करने आयेगा। पत्रमें संकेत था कि वह राजाकी कोई उचित ही चोरी करेगा और चोरी करनेसे पूर्व यदि वह पकड़ लिया जाय, या उसकी चोरी अनुचित सिद्ध हो तो वह न्यायोचित राजदंडका स्वयं प्रार्थी होगा।
उस रात राजाने अपने महलोंमें पहरे-चौकसीकी विशेष व्यवस्था करा दी।
तीन पहर रात बीते महलोंके एक भागमें शोर मचा। वहाँके प्रहरियों ने एक चोरको पकड़ लिया था। चोरके हाथ रीते थे। स्पष्टतया वह चोरी करनेसे पहले ही पकड़ लिया गया था ।
राजपुरुषोंने उसे रातभर महलके बन्दीगृहमें रखा और अगली सुबह राजाके सामने न्यायके लिए प्रस्तुत किया। ___ 'तुमने मेरे महलमें चोरी करनेका दुःसाहस किया है । यद्यपि तुम किसी वस्तुको चुरानेमें सफल नहीं हुए, फिर भी तुम्हारा यह प्रयत्न एक अनीति और अपराध है। अपने बचावके पक्षमें तुम कुछ कहना चाहते हो या न्याय-दंडके लिए प्रस्तुत हो ?' राजाने कहा। • 'दुःसाहस नहीं राजन्, मैंने यह एक सत्साहसका ही कार्य किया है। मेरा यह कार्य अपराधको नहीं, न्यायकी सीमामें आता है। और अपने प्रयत्नमें मैं विफल नहीं, सफल ही हुआ हूँ। मेरे पाँव इसकी साक्षी दे सकते हैं।' चोरने कहा ।
राजाने ध्यान-पूर्वक उसे देखा । वह तरुण और सुन्दर था; उसके