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मेरे कथागुरु का कहना है उन सातमेंसे छह घोड़े दर्शकोंकी दृष्टिके भीतर रुक गये थे। उनमेसे केवल एकका पता नहीं था, उसे अपने सवारको लेकर सरपट एक ओर को ओझल होते ही लोगोंने देखा था ।
इन छहों घोड़ों और सवारोंके बीचका संघर्ष साधारण नहीं था, किन्तु अन्ततोगत्वा सवारोंका लगामी लोहा घोड़ोंको मानना ही पड़ा। छठी शाम तक वे छहों सवार आगे-पीछे निर्दिष्ट स्थलपर पहुँच गये। उनमेंसे केवल एकका पहले दिनसे ही कोई पता नहीं था।
राजा अपने कुछ दरबारियों सहित पहलेसे ही वहां पहुंच गया था।
राजाकी आज्ञासे उन छहों सवारोंका यथेष्ट सत्कार किया गया और उस रात उनके विश्राम तथा थकान उतारनेवाले उपचारोंकी विशेष व्यवस्था की गई।
पिछले छह दिनोंके दुस्साध्य अश्वारोहण-श्रम तथा बीचकी पांच रातों के आशिक विश्रामकी अत्यल्पताने उनके शरीरको थकानसे बुरी तरह चूर कर दिया था। पिछलो रातके विश्राममें उनको थकान ही और उभरी थी, जैसा कि अतिश्रमके पश्चात् प्रारम्भिक विश्राममें होता है।
राजाकी आज्ञासे वे छहों सवार सुबह उसके सम्मुख उपस्थित हुए। उन्होंने आश्चर्यके साथ देखा, भटका हुआ वह सातवाँ सवार भी उनके साथ अपने घोड़े-सहित उपस्थित था। ___वह आधी रात बीते किसी समय वहाँ आ पहुँचा था और राज शिविरके बाहर ही कुछ देर विश्राम कर चुका था।
राजाने सभी सवारोंपर दृष्टि डाली और तब इस अन्तिमको लक्ष्य कर कहा___'तुम निश्चित समयसे बहुत पीछे, फिर भी आवश्यक कार्यके लिए ठोक समयपर यहाँ आ गये हो । मेरे चुने हुए सातों अश्वारोहियोंमें तुम्ही एक ऐसे हो जो मेरे प्रमुख, इस समयके आवश्यक कार्यपर आगे जानेके