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थके विजेता किसी राजाके अश्वालयमे एक सहस्र घोड़े थे। इन हजार घोड़ोंमें-से सात ऐसे थे जिन्हें राजकीय घुड़सवारोंमेसे कोई वशमें नहीं कर पाया था ।
राजाने राज्यभरमे घोषणा करा दी कि उसे ऐसे सात समर्थ अश्वारोहियोंकी आवश्यकता है जो इन दुस्साध्य घोड़ोंको सवारीमें ले सकें।
सैकड़ों प्रार्थी राजदरबारमें उपस्थित हुए और उनमेसे सात सर्व-श्रेष्ठ अश्वारोही चुन लिये गये।
राजाने सौ कोसकी दूरीपर एक निर्दिष्ट स्थान बताकर उन सभीको आदेश दिया कि वे उस दिनसे सातवों सन्ध्या तक अपने घोड़ों सहित उस स्थानपर पहुंच जायें।
निर्दिष्ट स्थानपर पहुंचनेके लिए सात दिनका समय दिया गया था, यद्यपि घोड़ोंकी सीधी दौड़के लिए वह केवल एक दिनका रास्ता था ।
निश्चित समयपर सभी अश्वारोही अपने-अपने चुने हुए घोड़ोंको पीठ पर जा पहुँचे।
सवारोंके शरीरका अपनी पीठपर स्पर्श पाते ही वे सातों घोड़े सामने की सड़क छोड़ अगल-बगलके मैदानों और खाई-खन्दकोंमें भाग निकले। सवार और लगामकी बात मानना उन बलिष्ठ, स्वच्छन्द घोड़ोंके स्वभाव के सर्वथा विरुद्ध था।
किन्तु वे सवार भी घोड़ोंके लिए आसान नहीं थे।
थोड़ी ही दूर भागनेके पश्चात्, उन घोड़ोंकी उच्छृखल गतिको अवरुद्ध होना पड़ा । प्रस्थान-स्थलीपर एकत्र सहस्रों दर्शकोंकी भीड़ने अपनी दृष्टिसीमाके भीतर ही देखा, उन घोडोंकी चाल रुक गई थी और वे सवारों की लगामके वशीभूत, सीमित क्षेत्रोंके भीतर नाच रहे थे।