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२२ श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र । * अपने राज्यमें टेक्स माफकर दिया और नंदाढ्यको युवराज पद
पर स्थितकर अन्य पद्मास्यादि मित्रोंको . यथोचित पद प्रदान किये अन्तमें अपनी सब स्त्रियोंको बुलाकर गन्धर्वदत्ताको पटरानी पद प्रदान कर सुख पूर्वक राज्य करने लगे।
ग्यारवां लम्ब। फिर कुछ दिनोंके पश्चात् विनया महारानी अपने पुत्र जीवंधर स्वामीको उसके पिताके राज्यपर स्थित देख और पुण्य पापका फल अपनेमें प्रत्यक्षकर संसारसे विरक्त हो गई और पुत्रकी अनुमति ले सुनन्दाके साथ वनमें जाकर पद्मा नामकी आर्यिकासे दीक्षा ग्रहणकर तपश्चरण करने लगी। ____फिर एक समय वसंत ऋतुमें जीवंधर स्वामी अपनी आठ स्त्रियों सहित बन क्रीड़ा करनेके लिये बनमें गये । वहां एक बानर दूसरी बानरीसे समंध रखनेके कारण कुपित अपनी वानरीका अनुनय करनेमें असमर्थ हो स्वयं मृत तुल्य स्थित हो गया तब यह देख उसकी बानरीको अत्यन्त दुःख हुआ और वह अपने पतिके समीप आकर उसके शरीरको बार २ अपने असे स्पर्श करने लगी तब कपटीबानर हर्षित हो उठ खड़ा हुआ और एक पनसका फल तोड़कर अपनी बानरीको दिया फिर वनपालने वानरीको डरा कर उससे वह फल छीन लिया यह देखकर तत्काल ही नीवंधर स्वामीके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न हो गया और विचार करने लगे कि यह वनपाल मेरे समान है और वानर काष्टाङ्गारके सदृश है राज्य