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श्री भीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र |
दशवा लम्ब ।
इसके पश्चात् जीवंधर स्वामी अपने माता पिता ( सुनन्दा और गन्धोत्कट से मिले तदनन्तर गन्धर्वदत्ता और गुणमालाको अपने समागमसे प्रसन्न कर पूज्य गन्धोत्कटसे सलाह कर और उनकी अनुमति ले विदेह देशकी धरणी तिलक नामकी नगरीके राजा अपने मामा गोविंद राजके समीप पहुंचे जीवंधर कुमार के वहां पहुचने पर गोविंदराजने काष्टाङ्गारका भेजा हुआ संदेशा मंत्रि योंके समक्ष सुनाया उस संदेशे में काष्टाङ्गारने यह लिखा था कि महाराज सत्यंधर की मृत्यु एक मदोन्मत्त हस्ती के द्वारा हुई थी किंतु पापकर्मके उदयसे मैं ही उस अयशका भागी हुआ और यह बात समझदार राजा गण मिथ्या समझते ही हैं यदि आप भी इस बातको मिथ्या समझकर यहां आकर मुझसे मिलनेकी कृपा करेंगे तो मैं अवश्य सर्वथा निःशल्य हो जाऊंगा ।
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फिर गोविन्दराजने कहा कि शत्रु हमको अपने पास बुलाकर हमें भी अपने जाल में फंसाना चाहता है । अस्तु हमको भी इसी बहाने से चलकर उसे इस चालका मजा चखाना चाहिये यह निश्चय कर अपने राज्य में इस बातका ढिंढोरा पिटवा दिया कि हमारी काष्टाङ्गार के साथ मित्रता हो गई है ।
पश्चात बहुत सी सेना के साथ जीवंधर कुमार व गोविन्दराजने शुभ दिन में भगवत पूजनादि मांगलिीक पूजा विधानकर राजपुरी के लिये प्रस्थान किया फिर कुछ दिनोंके पश्चात् राजपुरी के समीप पहुंचकर अपनी सेना ठहरा दी ।
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तब कष्टाङ्गारने गोविन्दराजको अपने पास आए हुए समझकर बहुतसी उत्तम २ वस्तुओं की भेट भेजी गोविन्दराजने भी उसके उत्तर में ऐसा ही किया ।