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क्षत्रचूड़ामणिः ।
नवमां लम्ब। फिर जीवंवरकुमारको विवाहके चिन्होंसे युक्त देखकर बुद्धिघेण नामके विदूषकने कहा कि औरोंसे उपेक्षा की हुई कन्याके साथ विहाह करने में मित्र आपका क्या बड़पन है इसको तो हर कोई विवाह सकता था हम आपको चतुर जब हीं समझेंगे । जब सुरमञ्जरीके साथ विवार करलो यह सुन जीवंधर कुमार मित्रों के पाससे चल दिये और यक्षके मंत्रके प्रभाक्से बूढ़े ब्राह्मणका वेष बना कर किसी प्रकार सुरमञ्जरीके यहां पहुंचे सुरमञ्जरीने अत्यन्त वृद्ध ब्राह्मणको भूखा समझ कर मोनन कराया और आराम करनेके लिये एक सुकोमल शय्यो दी फिर क्या था उस बूढ़ेने मंत्रके प्रमावसे जगन्मोहन गाना प्रारम्भ किया निसको सुन सुरमञ्जरी इसको अत्यन्त शक्तिशाली समझी
और अपना कार्य अर्थात् इच्छित वरकी प्राप्तिका उपाय इससे पूछा तब उसने कहा कामदेवके मंदिरमें चल कर उसकी उपासना करो अवश्य तुम्हारा इच्छित वर तुमको वहां ही प्राप्त होगा फिर सुरमञ्जरी इसकी बात पर विश्वास कर उसके साथ कामदेवके मंदिरमें गई और जीवंधर कुमारको पतिभावसे पानेके लिये प्रार्थना की वहां पर पूर्व से बैठे हुए बुद्धिसेनने कहा " तुम्हारा पति तुमको मिल गया " पीछे फिर कर क्या देखती है कि जीवंबर कुमार खड़े हुए हंस रहे हैं । कुमारी " यह कामदेवके ही बचन हैं " ऐसा समझी और कुमारको देख कर अत्य त लज्जित हुई अंतमें जीवंधरके साथ उपका विवाह हो गया।