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क्षत्रचूड़ामणिः ।
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यह सुनकर स्वामी गुणमालाकी व्यथाका सूचक पत्रको पढ़कर खेचरी गन्धर्वदत्ता के लिये ही खेदित हुए ।
फिर ससुरालके सब मनुष्य उनके छोटे भाई नन्दाढ्यको घेर कर उससे प्रेमालाप करने लगे ।
तत्पश्चात् एक दिन बहुतसे ग्वालिये राजाके अङ्गणमें आकर इस प्रकार चिल्लाने लगे कि बनमें हमारी गाऐं बहुत से मनुष्योंने रोक ली है उनके आक्रंदन शब्दको सुनकर श्वसुरसे रोके हुए भी जीवंधर कुमार उनकी गौऐं छुड़ानेके लिये बनमें गये वहां जाकर क्या देखते हैं कि गौओंके पकड़नेवाले नन्दाद्व्यके चले आनेपर गन्धर्वदत्त के द्वारा भेजे हुए सब मेरे मित्र ही है उन सबने मालिककी तरह उनका सन्मान किया और जीवंधर स्वामीका मित्रवद् उन लोगोंके व्यवहार न करनेसे और अधिक सन्मान करने से उन पर संदेह हुवा और उनसे एकान्त में उसका कारण पूछा मित्रों में से प्रधान मित्र पद्मास्यने कहा " स्वामिन्! आपके वियोगसे दुखत हम लोग आपके समीप आते हुए कुछ समय के लिये दण्डकारण्य में ठहरे वहां पर तपस्वियोंके आश्रमको देखनेके लिये इधर उधर घूमते फिरते हुए हम लोगोंने एक स्थान पर किसी एक पुण्य माता को देखा उस माताने हम लोगोंसे पूछा कि तुम कहांके रहने वाले हो और कहां जा रहे हो फिर हमने आपकी घटनाका सब वृत्तान्त माता से कहा जिससे उन्हें दारुण दुःख हुआ फिर वार २ आश्वासन दिलाकर उनकी आज्ञा लेकर आपका वृत्तान्त जानकर आपकी सेवामें आये हैं." फिर जीवंधरस्वामी जीवित जननीको