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क्षत्रचूड़ामणिः । बहाना बनाकर वहांसे शीघ्र ही चली गई उसका पति वहां आकर जीवंधर स्वामीसे कहने लगा कि हे महाभाग ! मैं अपनी प्यासी स्त्रीको इस बनमें बिठलाकर जल लानेके लिए गया हुआ आकर नहीं देखता हूं और विद्याधरोंके उचित मेरी विद्याभी न मालूम इस समय कहां चली गई जीवंधर कुमार उसके यह बचन सुनकर स्त्रीमें अत्यन्त प्रेम करनेसे डरे और उस भवदत्त विद्याधरको बहुत समझाया किन्तु उस कामातुरके चित्तमें जीवधर स्वामीके उपदेशने कुछ भी अप्तर नहीं किया फिर वहांसे चलकर जीवंवर कुमार हेमामा नाम नगरीके समीप पहुंचे वहां दृढ़मित्र राजाके सुमित्रादि बहुतसे पुत्र अपने २ बाणों द्वारा बगीचे में आम्रके फलोंको तोड़ रहे थे किंतु उनमें से कोई भी धनुर्विद्यामें चतुर नहीं था कि आम्र सहित बाणको वापिस अपने हाथमें ले आये किंतु जीवंधर स्वामीने अम्र सहित बाणको अपने हाथमें लेकर उन्हें दिखा दिया यह देख कर बड़े राजकुमारने उनसे कहा कि यदि आप उचित समझें तो हमारे पितासे मिलनेकी कृपा करें वे बहुत दिनोंसे धनुर्विद्यामें चतुर विद्वानकी खोनमें हैं जीवंधर कुमार उनके कहनेको स्वीकार कर रानासे मिले और रानाकी प्रार्थना करने पर इन सबको धनु. विद्यामें प्रवीण कर दिया फिर रानाने इस उपकारसे उपलत हो अपनी कनकमाला नामकी कन्याका उनके साथ विवाह कर दिया। और फिर जीवंधर स्वामी अपने सालोंके प्रेमसे वहां ही रहने लगे।
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