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१८ श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र । मरी हुई समझनेसे अतीव दुखी हुए और माताके चरण कपलोंके दर्शनोंके लिये अत्यन्त उत्कंठित हुए फिर क्या था श्वसुगदिककी आज्ञा ले और अपने सालोंको समझाकर वहांसे माताके दर्शनोंके लिये चल दिये दण्डक अरण्यमें आकर उन्होंने माताके दर्शन किये।
माताने जन्मसे विछुड़े हुए पुत्रको पाकर पहलेके सारे दुःख भुला दिये।
फिर जीवंधरस्वामीने अपनी माताको अपने मामाके समीप भेनकर स्वयं राजपुरीके लिये प्रस्थान किया । चारुवृत्तिसे वहांका वृत्तान्त जाननेके लिये जब कि वे इधर उधर घूम रहे थे एक स्थान परगेंदसेक्रीडा करती हुई एक जबान कन्याको देखकर उसे विवाह करने की इच्छासे उसके दरवाजेके अगाडीके छज्जेपर जा बैठे। इतनेमें उस कन्याके पिताने आकर उनसे कहा कि ज्योतिषियोंने मेरी कन्याके जन्म लग्नमें यह गणनाकी थी कि तुम्हारे घर पर जिसके आनेसे बहुत दिनोंके रखे हुए रत्न बिक जायेंगे वही इस कन्याका पति होगा आज आपके आनेपर मेरे सब रत्न बिक गये हैं इस लिये आप कृपा कर मेरी विमला नामकी कन्याके साथ विवाह करें।
जीवंधरस्वामीने उसके आग्रहसे कन्याके साथ विवाह करनेकी स्वीकारता दे दी और विमलाके साथ विवाह कर विवाह के चिन्हों सहित अपने मित्रोंसे जा मिले ।