Book Title: Kshatrachudamani
Author(s): Niddhamal Maittal
Publisher: Niddhamal Maittal

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Page 17
________________ १६ श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवनचरित्र । आठवा लम्ब। - फिर एक दिन मुस्कराती हुई कोई स्त्री उनके पास पहुंची उन्होंने उसे किसी मतलबसे आई हुई समझ कर आदर पूर्वक पूछा “ कि तुम यहां क्यों आई " उसने कहा कि हे स्वामिन् ! आयुधशालामें और यहां पर मैं आपको अभे रूपसे देखती हूं " अर्थात् जिस समय आप यहां हैं उसी समय मुझे आपके समान कोई दूसरा पुरुष वहां दिखाई दिया ” फिर जीवंधर स्वामीने यह बात सुन कर आश्चर्य युक्त हो मनमें विचार किया कि क्या यहां मेरा भाई नंदाढ्य आगया है शीघ्र ही वहां जाकर देखा तो उस स्त्रीका कहना सच निकला वहांपर नंदाढ्य ही था फिर क्या था दोनों भाइयोंके समागम होने पर जीवंघर स्वामीने नंदादयसे पूछा कि तुम यहां कैसे आये तब उसने अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया अर्थात् “दुष्ट काष्टाङ्गारसे आपका अनिष्ट (मरण) निश्चयकर प्रजावती गन्धर्वदत्ताके रहनेके घर में पहुंचा उसको पतिवियोगसे कुछ भी दुःखित न देशकर मैंने कहा हे स्वामिनि ! पतिके अभावमें कुलीन स्त्रियोंको तुम्हारी जैसी प्रवृत्ति नहीं देखी जाती हैं यह सुन उसने कहा " हेवत्स तुम क्यों खेदित होते हो तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राता आनन्द पूर्वक सुख भोग रहे हैं यदि तुम्हारी इच्छा उनके दर्शन करनेकी है तो मैं तुमको अपनी विद्याके प्रभावसे उनके पास पहुंचा देती हुँ मैं पापिनी उनकी आज्ञाके विना एक पग भी घरसे बाहर नहीं जा सकती हूं" यह कह कर मुझे मन्त्रपूर्वक शय्यापर सुला कर आपके समीप यह पत्र देकर भेना है'।

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