Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot

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Page 13
________________ छाया-यस्मिन् समये च खलु त्रिशला क्षत्रियाणी दारकं पासूत, तस्मिन् समये च खलु दिव्योयोतेन त्रैलोक्यं प्रकाशितम् , आकाशे देवदुन्दुभयो वादिताः, अन्तर्मुहूर्त नारकजीवानामपि दशविध-क्षेत्रवेदनाः परिक्षीणाः, अन्योऽन्यवरं च तेषाम् उपशमितम् । अधना सचन्दना कलित-ललित-कमल-मृष्टिष्टिर्जाता। स्फारा वसुधारा दृष्टा। पवनाश्च मुखस्पर्शना मञ्जुला अनुकूला मलयजो-त्पल-शीतला मन्दमन्दाः सौर पञ्चमवाचना से नवमवाचनापर्यन्त द्वितीय भाग मूल का अर्थ-ज समय' इत्यादि। जिस समय त्रिशला क्षत्रियाणी ने पुत्र को जन्म दिया. उस समय दिव्य उद्दयोत से तीनों लोक प्रकाशित हो गये। आकाश में देवदंदमिया बजने लगीं। अन्त 1 के लिए नरक के जीवों की भी दस प्रकार की क्षेत्र वेदनाएँ शान्त हो गई। उन्होंने आपस का वैर त्याग दिया। मेघों के अभाव में भी, चन्दन की गन्ध से युक्त, सुन्दर कमलों से युक्त वर्षा हुई। भगवजन्मसोने की प्रचुर वर्षा हुई। सुखद स्पर्श वाला, मनोहर, अनुकूल, मलयज चन्दन और कमल के समान हम कालवर्णनम् शीतल, मुगंध से आनन्द देने वाला मन्द-मन्द पवन चलने लगा, मानो बाल्य अवस्था में स्थित भगवान પંચમવાચનાથી નવમવાચના પર્યા બીજો ભાગ भूगन। अय- 'जं समपं' त्याहि ने सभये निया राणीने पुत्रने भाष्यो ते अभये, ये લેકમાં પ્રકાશ થશે. આકાશમાં દેવદુંદુભી વાગવા લાગ્યાં. અંતમુહૂર્ત સુધી. નારકીના છની દશ પ્રકારની ક્ષેત્રવેદના શાંત થઈ ગઈ. નારકીએ અંદર અંદરને વેર ભાવ ભૂલી ગયાં. વરસાદની ગેરહાજરીમાં પશુ, ચંદનની સુગંધવાળા સુંદર કમલને વરસાદ વરસ્ય. સેના મેહરાની પણ વૃષ્ટિ થઈ. સુખદ સ્પર્શ કરવાવાળે, મનેહ૨, અનુકુળ, મલયાગિરિના ચંદન જેવી શીતલતા આપવાવાળે, કમળ જે કડો, અને સુગંધિત તેમજ આનંદકારી પવન મંદ મંદ રીતે વહેવા લાગ્યા. જાણે આ પવન તે બાલકને સ્પર્શ nal કીએ અંદર અંદરનો રસ અંતમુહૂત" સુધી. નારીના અને તે સમયે, ત્રણે ॥२॥ તે Jain Education For Private & Personal use on

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