Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
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श्रीकल्पसूत्रे ॥१॥
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जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री - घासीलालजी - महाराज विरचितस्य श्रीकल्पसूत्रस्य संस्कृत-प्राकृतज्ञ - जैनागमनिष्णात- प्रियव्याख्यानिपण्डितमुनिश्रीकन्हैयालालजी - महाराज - विरचितायां कल्पमञ्जरी - व्याख्यायां
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पञ्चमवाचनादि - नवमवाचनान्तो द्वितीयो भागः ।
मूलम् - जं समयं च णं तिसला खत्तियाणी दारयं पया तं समयं च णं दिव्बुज्जोएणं तेलुकं पयासियं, आगासे देवदुदुहीओ आहयाओ, अंतोमुहुत्तं णारयजीवाणपि दसविह- खित्त-वेयणा परिक्खीणा, अन्नोभवेरं च तेर्सि उवसमियं अघणा सचंदणा कलिय- ललिय-कमल-सिट्टी बुडी जाया। फारा बसुहारा बुट्टा, पण सुहफासणा मंजुला अणुकूला मलयज - उप्पल - सीयला मंदमंदा सोरब्भाणंदा तं दारगं फासिउं विव पत्राया । देवेहिं दसद्धवण्णाई कुसुमाई निवाइयाई, चेलुक्खेवे कए, अंतरा य आगासे 'अहो जम्मं अहो जम्मं' ति घुद्धं । उज्जाणाणि य अकालम्मि चैव सव्वोउय - कुसुम - निहाणाणि संजायाणि । वावी - कूपतडागाइ - जलासएसु जलानि विमलानि जायाणि । जणवए य जणमणा हरिस - पगरिस-वसेण पवनवेगेण सरसि घणरसाविव विसप्पमाणा संजाया । वणवासिणो तुणो जम्मजायाणि वेराणि विहुणिय सहाहारिणो सहविहारिणो य जाया। अंबरमंडलं धाराहरा - डंबर - विदुरं श्रमलं चक्कचिक्कचंचियं जायं । कोइलाइपक्खिणो साल - रसाल - तमालपमुह - साहिसाहासिहावलंबिणो सहयार - सरस - मंजरी रसस्साय - मायो- दंचियपंचमस्सरा मुहरा अनंतगुण-गाम-धाम-पहुललाम- जस-गायग-सूय-मागह- चारण- विडंबिणो महुरं परं कूइउमारभित्था ।। ०५५ ।।
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कल्प
मञ्जरी टीका
भगवज्जन्मकालवर्णनम्
11211
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