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जैन प्रागम-अंग बाह्य-छेद सूत्र
[ 35
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7
8A
दशाशुत का | प्रा. मा. पाठवा अध्याय
118 | 25 x 11x15x45 | स. न. 1216 का । 1810 106 | 25 x 11x5 x 38 सं.ग्र.12162-2500 1816
+825 | 24x11x6 x 32 | सं.
1825 26x12x11x38
1216 1831
5x12x11x34
1843
प्रा. मा.
| 26 x 12 x 17x40 72 | 27 x 13x11 x 30 129 | 27x14x17x38
1845 सत्यसुन्दर 1851
1865
5x10x5x46
1869
61 25x14x12x34
,
1216
प्रा. मा.
160
27x13x13x31
9वाचनायें 1875
विजयचंद 9व्याख्यान 1876
विगतवार गुलाबविजय
प्रशस्ति ग्र. 12161
| प्रारंभ में कुछ सुभटपुर
प्रवचूरि भी 1883
11885
26- 11 x 13 x 43 26x12x8 x 35 26 x 31 x 12x32 26 x 13x 15 x 44
26 x 12 x 10 x 26 10026 x 13 x 16x51
72 25x11 x 13x36 126, 25 x 10 x 17x60
20.50 रुपयों
में खरीदी गुणचद से
19वीं
मिद्धचंद्र 8वाचना तक 19वौं
प्रा. सं.
| रत्नसार अन्तवर्वाच्य का उल्लेख
प्रा.सं.मा.
ग्र.2500 | 19वीं
19वीं
10325x11x15x47
19वीं
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