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छन्द व काव्यशास्त्र :
साहित्यिक अलंकार हि.
काव्य शास्त्र
11
काव्यालंकार - शास्त्र सं.
31
"
17
11
19
"
काव्य-लक्षण
काव्य शास्त्र
छंद शास्त्र
अलंकार शास्त्र
"1
"1
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33
6
"
93
"1
77
19
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11
17
रा.
प्रा.
प्रा.सं.
सं.
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रा.
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11
"
7
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"1
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60
90
100
53
12
77
43
32
237
16
5
10
गु.
8
4
7
6
6
6
8
गु.
21
9
5
35
8 A
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21 × 17 × 19 × 25 संपूर्ण 17 प्रस्ताव
14 × 20 × 17 × 15
प्रपूर्ण 13 प्रस्ताव
26 × 11 × 16 × 42
संपूर्ण 10 उल्लास
26 × 11 x 15 x 55
26 × 12 × 17 × 53
28 × 13 × 14 × 49
26 × 11 × 14 × 45
26 x 12 x 13 x 35
33 x 16 x 16 × 48
26 × 1 1 × 17 × 54 अपूर्ण 4 उल्लास
27 x 12 x 15 x 49
23 x 11 × 15 × 50
27 × 13 × 14 × 55
15 x 13 x 9 x 19
"
25 x 13 x 10 x 30
37
"
साढ़े छ उल्लास तक
संपूर्ण
अपूर्ण - त्रुटक
संपूर्ण
26 × 11 × 13 × 42
17 × 12 × 10 × 2 2
25 x 11 x 15 × 34
25 x 13 x 9 x 33
27 × 1 1 × 15 x 54
27 × 11 × 17 × 60 संपूर्ण 6 अध्याय की
ग्रंथाग्र 340
11
20 श्लोक
अपूर्ण बीच के पन्न े 2 से
11
संपूर्ण लगभग 48 गीत
76 गा.
75 गा.
5 प्रभायें
11
9
11
11
"
23 x 13 × 13 x 35
25 × 11 × 11 × 36
29 × 14 × 10 × 28 संपूर्ण
अपूर्ण
संपूर्ण 273 छंद
121 छंद
273 पद
"1
10 उल्लास के /
ग्रं. 3244
27
2130 ग्रंथाग्र 1870 कृष्णगढ
19वीं
60 पद
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1767
19वीं
15वीं
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1540
11
17वीं
19वीं
18वीं
19at
"
10
1800
20वीं
19वीं
11
16वीं
19वीं
18वीं
1834
19at
11
[ 451
11
प्रतिम 3 पन्न श्रौषध मंत्र के
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मूल की व्याख्या
मूल की व्याख्या बीच में प्राधे पन कम हैं मूल की व्याख्या
नामादिका पता नहीं पड़ता है
प्राचीन प्राकृत या सं. में किसी मूल ग्रंथ की अवचूरि है ।
बीच में पन्न कट्ट हुए हैं ।