Book Title: Jodhpur Hastlikhit Granthoka Suchipatra Vol 01
Author(s): Seva Mandir Ravti
Publisher: Seva Mandir Ravti

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Page 433
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra महाकाव्य प्रादि साहित्यिक ग्रंथ :-- साहित्यिक महाकाव्य सं. साहित्यिक ऐतिहा सिक 17 6 "1 " 13 "1 " „ 11 " "1 "1 "" 11 "" 17 13 पत्नी गुणलक्षण मनाविज्ञान 33 "1 = 13 " 7 93 " 31 22 " मा. ,, सं. 8 107 97 88 109 25 45 12 8 9 80 28x14 x 10 x 28 52,31, 23 से 25 x 11 से 12 5,12 119 330 246821 से 27 x 11 से 12 19 146 27 x 1 2 × 15 x 45 41,2825 x 11 व 28 × 1 3 26 × 1 1 × 17 × 60 17 75 9 8 15 8 A 75 www.kobatirth.org 28 22 x 9 x 10 x 36 15 27 x 11 x 11 x 36 27 x 11 x 11 × 39 28 x 18 x 14 x 12 26 × 10 × 19 27 x 11 x 13 x 36 × 60 29 × 11 x 10 x 40 26 × 11 × 1 8 × 47 पूर्ण 3 / 22 तक 25 × 1 1 × 13 x 36 24 × 11 × 16 × 53 91 26 x 11 x 14 x 51 17 संपूर्ण 19 सर्ग ग्रं. 2200 1469 19वें के 56 श्लोक 1553 तव 1642 11 31 " " "1 27 11 "1 11 " "" केवल 57 श्लो. तब मात्र 1/2 सर्ग प्रथम 6 पन्न े कम बाकी संपूर्ण संपूर्ण 19 सर्ग की 31 26 x 12 x 15 x 48 22 × 11 × 12 × 36 श्रपूर्ण 2 सर्ग तक हो 24 x 10 x 17 x 52 " 9 19 स 11 19वीं 17वीं सर्ग 16 से अंत तक 1730 18वीं 26 x 11 x 15 x 52 15 × 11 × 15 × 15 संपूर्ण 15 x 25 x 20 × 22 26 x 11 × 12 x 32 17 प्रथम सर्ग के 75 श्लोक 11 9 12 वें सर्ग तक प्रथम 2 ग्रंथों की पूरी मेघदूत पूर्ण "7 21 For Private and Personal Use Only 21 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 "" 19/20at 19वीं 19/20at 17वीं 1762 | 1890 से 20 वी प्रथम प्रति सावचूरि है 1819 1890 जोधपुर 1884 17वीं 19वीं 15वीं 19वीं 1895 10 विलास 307 गाथा केवल पहिला पन्नाकम 1704 (417 1795 11 जीर्ण प्रति पन्न 328 से 372 (अंत) रामविजय तपगच्छीय का शिष्य प्रथम पन्ना 14 गाथा का कम

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