Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ का बखान किया गया है। इस दृष्टि से अगर श्री कृष्ण को वैदिक विष्णु का ही रूप मान लिया जाए तो अत्युक्ति नहीं हो सकती। "विष्णु" शब्द का व्युत्पत्तिगत अर्थ प्रवेश या व्याप्ति है। "विश्" धातु निष्पन्न इस शब्द से सम्पूर्ण विश्व में व्यापकता का भाव व्यक्त होता है। वेद के प्रसिद्ध भाष्यकार सायण ने "विष्णु का अर्थ व्यापनशील माना है जबकि पाश्चात्य विचारक ब्लजाफिल्ड के अनुसार "पृष्ठ पर होकर" (on the back) अर्थ किया गया है। "आप्टे" ने इस शब्द की निष्पत्ति विश् धातु के प्रवेश मूलक अर्थ के कारण इसे विष्णु माना है।" विष्णु शब्द में "वि" का अर्थ मोक्ष भी बताया गया है। मोक्ष देने की योग्यता रखने वाला मोक्षदाता ही विष्णु है। वेदों में इन्द्र द्वारा वृक्ष और पाणिस से जलमोक्ष या वरुण द्वारा पाश मोक्ष का भी अर्थ लगाया जा सकता है। इस दृष्टि से विष्णु उपेन्द्र' भी कहे जा सकते हैं और इनका प्रमुख गुण व्यापकता सिद्ध होता है। विष्णु की इस व्यापकता का वर्णन ऋग्वेद के कई मन्त्रों में मिलता है। अपने पैरों से अखिल ब्रह्माण्ड माप लेने की विशेषता के कारण विष्णु एक महान् और व्यापक शक्ति के प्रतीक बनकर हमारे समक्ष आते हैं। आदिव्य भाव का बोधक बनकर उनके जिन तीन पदों की चर्चा है, उनमें दो का आधार पृथ्वी एवं अन्तरिक्ष है, पर उनका तृतीय, परम पद, अदृष्ट है। तीन पदों में विष्णु ने ब्रह्माण्ड माप लिया। उन्होंने वे.तीन पद किये और ब्रह्माण्ड को लांघ गये।२ विष्णु के इन पदों की चर्चा पौराणिक साहित्य में भी मिलती है। वामनावतार का मूल स्रोत ही इसे मान सकते हैं परन्तु उपर्युक्त मन्त्र में "गोपा" शब्द का अर्थ गौवों का पालन करने से है। श्री कृष्ण का सम्बन्ध गायों से अधिक था। इससे यह प्रतीत होता है कि विष्णु के इन्हीं गुणों का वर्णन परवर्ती साहित्य में श्री कृष्ण के व्यक्तित्व में दृष्टिगोचर होता है। इन्द्र रूप : ___ वेदों में इन्द्र का वर्णन भी ऐसा ही मिलता है जिसमें वर्तमान कृष्ण-चरित्र के प्रायः सभी अभिप्राय मिल जाते हैं। इन्द्र के जन्म पर इन्द्र की माता यह प्रार्थना करती है कि वह उसे नारकीय स्थान में न रखने दे। इसके बाद गोवर्धन धारण, नाग नाथने एवं माखन चोरी आदि की कुछ घटनाएँ भी कुछ परिवर्तित रूप में इन्द्र के विषय में मिलती हैं। जैसे—जिसने हिलते हुए, यानि चंचल पर्वत से क्रीड़ा की।३ जिसने पर्वत को आकाश में पृथ्वी से ऊपर उठा लिया। जिसने सर्प को मारकर सर्पणशील नदी को मुक्त कर दिया।५ जो कालिय-नाग से यमुना मुक्ति का वर्णन है। इसके बाद कई मन्त्रों में सोम की चोरी का वर्णन भी मिलता है जो कृष्ण की माखन चोरी का बीज है। इस प्रकार कई मन्त्रों में श्री कृष्ण की समानता इन्द्र से की गई है। -