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महोपाध्याय माणकचन्द रामपुरिया
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वीणा वादिनी जय हे। वीणा वादिनी जय है ।
ज्ञान-प्रभा नव ज्योति समुज्ज्वल, तिमिरांचल-पट किरणें उज्ज्वल;
नव प्रकाश बन उतरो साज्ज्वलमधुर सुभासिनी जय हे। वीणावादिनी जय हे!!
नव-नव सुमन खिलें अन्तर के, बीत चले युग मनवन्तर के;
विकसे सरसिज दृग-प्रान्तर केसहज सुहासिनी जय हे। वीणावादिनी जय है !!
मानवता की उन्नति के स्वर, देव-तत्त्व के पोषक सत्वर;
जड़ता-कटुता, सकल विषम हरकण-कण लासिनी जय हे! वीणावादिनी जय हे!!
झंकृत कर दे तार हृदय के, नवप्रकाश अब खिले उदय के;
गूंजे गीत पवन-किसलय केस्वर-निनादिनी जय हे! वीणा वादिनी जय हे!!
रुकें रुकावट कहीं न कोई, परम भावना रहे न सोई;
दृष्टि-दृष्टि से लगकर रोईकष्ट-नाशिनी जय हे। वीणावादिनी जय हे !!
जन-जन हार बने शुचि कविता, मेरे भाव-कुटिल की भविता;
चमके नभ में पावन सविताभाव-विलासिनी जय हे! वीणावादिनी जय हे !!
सकल सृष्टि नव-नव उद्भासित, रन्ध्र-रन्ध्र निर्बन्ध सुवासित;
तृण-तृण-तरु-तरु त्वरित प्रकाशित विश्व-रूपिनी जय हे ! वीणावादिनी जय हे !!
जय गणेश सिद्धि-विनायक, हे गणनायक, तेरी जय-जय गाऊँ । तू ही मंगल-दाता तेरे पद में शीश नवाऊँ ।। एकदन्त औ वक्रतुण्ड तू तेरी महिमा न्यारीकृपा करो सौभाग्य-विधाता दृष्टि खुले रतनारी ।
तड़प रहा जग बड़ी व्यथा है, शान्ति-सुधा बरसाओ, सर्वभूत जय मंगलदाता ! जल्दी भू पर आओ, घिरा चतुर्दिक अन्धकार है, गूंज रहा है क्रन्दन
ज्ञान विभा फैलाओ भू पर जयति भवानीनन्दन । सम्मुख कष्ट अपार खड़े हैं जागो हे वरदानी, रूद्ध हुई जाती है सत्वर खोल मुखर कर वाणी; खिले प्रकाश धरा पर नूतन मिटे सकल अँधियारीरजकण महिमावान बना है मूसक अतुल सवारी ।
विघ्न हरें, सब कष्ट कटें, यह धरती बने सुहावन, शुभारम्भ तू शुभ प्रयत्न के तेरी गाथा पावन; रोग-व्याधि सब मिटे, करें सब तेरा प्रतिपल वन्दनजय गणेश, जय सुख के दाता । जय-जय शंकर नन्दन ।।
विद्यालय खण्ड/६
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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