Book Title: Jain Vidyalay Granth
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 288
________________ 7 रत्ना ओस्तवाल अन्तर जगत की दृष्टि में महापुरुषों ने इस अवस्था को अज्ञान कहा है। और अज्ञान का फल अंधकार और पतन है, जीवन निर्माण नहीं है। __ जीवन विकास के महत्वपूर्ण अनमोल सूत्र हैं-सही समझ और सच्चा विश्वास। इसके अभाव में मनुष्य जन्म पाकर भी पंगु है। जीवन को झांकने की दो दृष्टियां हैं - १) बाह्म दृष्टि २) भीतरी (अन्दर) दृष्टि। बाह्म जगत को बाह्म दृष्टि से सजाया व संवारा जाता है। लेकिन जीवन का उद्देश्य ढूंढ़ा नहीं जा सकता। अंतर दृष्टि (अपने आप में झांकना) जीवन निर्माण की सशक्त नींव है जो बिना किसी आंडबर के बिना, सजे संवरे सही समझ और सच्चा विश्वास दे सकती है। यही सच्चा दर्शन और विश्वास सम्यक दर्शन है। हमें आवश्यकता है यह समझने की कि इस सम्यक् दर्शन की क्या सार्थकता है? अंतर जगत की साधना करने वाला अन्य विषय समझें या न समझें किन्तु सम्यक दर्शन के महत्व को समझना अति आवश्यक है। जीवन जीने की कला ला सम्यक दर्शन का अर्थ सहज शब्दों में जीवन जीने की जीवन एक अनमोल रत्न है, और इस जीवन का दर्पण कला है। याने आत्मा की अनंत शक्ति को मानव जो भूल मनुष्य जन्म है। मनुष्य जन्म में इस जीवन को कोई संवारता गया है उसकी स्मृति करना है। जैसे जीवन तो मिला, लेकिन है, कोई सजाता है, कोई उत्थान करता है तो कोई पतन कैसे जिया जाय, भूल गया है। इस विस्मृति को पुनः जीवन करता है। यह बात सर्वविदित है, हर कोई इसे जानता है, का मूल्य समझाकर उस संपदा को संवारना सही मायने में देखता है, लेकिन जीवन की संपदा का मूल्यांकन सही अर्थों सम्यक दर्शन है। में यदि कहीं होता है तो वह है आचरण, जिसे कहा जाता १) देखने की क्षमता। (दर्शन) है, जीवन जीने की कला Art of Living | २) दिखाने की क्षमता। (ज्ञान) आज के इस भौतिक युग में मनुष्य ने अपनी दृष्टि इस देखने और दिखाने में जीवन का अमूल्य समय बाह्यमुखी बना ली है। सुबह बिस्तर से उठना व बिस्तर पर । संवारने में बीता है या बिगाड़ने में, यही है चरित्र की सोने तक का लम्बा समय इस तरह व्यतीत करता है कि उसे व्याख्या। देखना, दिखाना और सहन करना इन तीनो की स्वयं को जानने की भी जरुरत महसूस नही होती। त्रिवेणी जीवन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह इस क्रियाकलाप का परिणाम तनाव की वृद्धि करता है। करती है। आज के संदर्भ में चिंतन किया जाए तो हमारे इस खींचातानी में तनाव का उत्तरोत्तर बढ़ना स्वास्थ्य की सामने भगवान महावीर के सिद्धान्त सहज ही उपयोगी सिद्ध प्रतिकूलता, पैसों का अभाव, आवश्यकता की लम्बी कतार, होते हैं। चाहे अहिंसा हो या अपरिग्रह का सिद्धान्त हो, इन - इच्छाओं का पहाड़, इस तरह स्वयं के जीवन को बिना खोजे बिना पहचाने, बिना जिज्ञासा किए जिये जाता है। और जीवन सिद्धान्तों का आचरण अणु रूप से हो या वृहद् रूप से हो, के यथार्थ से कोसों दूर हो जाता है। वास्तविकता की इस आचरण होना अनिवार्य है. स्थिति में मनुष्य को भौतिकता की चकाचौंध ने अज्ञानी बना __ आज के परिवेश में यह जाना जाता है कि उच्च शिक्षा, दिया है। सजा-संवरा, पढ़ा-लिखा बाह्य ज्ञान की सारी धन-संपदा से परिपूर्ण होना जरूरी है। ये सारे तत्व निस्संदेह डिग्रियों का भण्डार लिए हुए भी जीवन को संवारने में जीवन निर्माण में सहायक हो सकते हैं लेकिन सिद्ध नहीं हो असमर्थ साबित हो रहा है। सकते। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत् खण्ड/१०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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