Book Title: Jain Vidyalay Granth
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 318
________________ कृति अपना विशेष महत्व रखती है। इसमें कविवर समयसुन्दरजी चित्रफलक पर उनका कठिन श्रम झलकता है और उनकी अगाध की ५६३ लघु रचनाओं का संग्रह है। डॉ० हजारीप्रसादजी द्विवेदी विद्वता ग्रंथ के आद्यान्त भाग में । इस उत्कृष्ट कोटि के ग्रन्थ प्रणयन ने इसकी भूमिका लिखकर इस ग्रन्थ के महत्व का प्रतिपादन किया के लिए नाहटा द्वय की जितनी भी प्रशंसा की जाय, वह थोड़ी है। है। इसमें सन् १६८७ के अकाल का बड़ा ही जीवन्त वर्णन है। उसमें करीब १०० चित्र भी दिये गये हैं। वह बड़ा हृदयद्रावक और प्रभावक है। वस्तुत: नाहटाजी ने इस ग्रन्थ १४. सीताराम चौपाई-इस ग्रन्थ का सम्पादन भंवरलालजी का सम्पादन-प्रकाशन करके हिन्दी साहित्य के अध्येताओं के सामने नाहटा एवं अगरचंदजी नाहटा ने किया है। इसका प्रकाशन सादूल बहुत अच्छी सामग्री प्रस्तुत की है। राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट से संवत् २०१९ में हुआ है। ११. युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि-श्री भंवरलालजी नाहटा महोपाध्याय कविवर समयसुन्दरजी १७वीं सदी के महान् एवं श्री अगरचन्दजी नाहटा द्वय ने यह ग्रन्थ लिखा है। इसका विद्वान् संत थे। आपका साहित्य बहुत विशाल है। आपने गद्य और प्रकाशन श्री अभय जैन ग्रन्थमाला के बारहवें पुष्प के रूप में हुआ पद्य दोनों ही विधाओं में साहित्य सर्जना की थी। आपकी पद्य है। इसे लेखकों ने अपने स्व० पिता एवं पितामह श्री शंकरदानजी रचनाओं में सीताराम चौपाई सबसे बड़ी रचना है। इसका परिमाण नाहटा को समर्पित किया है। इसका प्रकाशन संवत् २००३ में ३७०० श्लोक परिमित है। जैन परम्परा की राम कथा को इस हुआ है। महाकाव्य में गुंफित किया गया है। इस ग्रन्थ को लिखने के लिए लेखकद्वय को पर्याप्त श्रम करना १५. रत्न परीक्षा-यह ग्रन्थ ठक्कुरफेरु विरचित लगभग पड़ा, तदर्थ जैसलमेर की यात्रा कर प्राचीन ज्ञान भण्डारों से चरित्र आठ सौ वर्ष प्राचीन है। मूल प्राकृत भाषा में रचित है। इसका हिन्दी नायक से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। इस पुस्तक की अनुवाद श्री अगरचन्द भँवरलाल नाहटा ने किया है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सूरिजी से सम्बन्धित पूर्ण प्रमाणित रत्नपरीक्षा सम्बन्धी इने गिने ग्रन्थों में इस ग्रन्थ का महत्वपूर्ण यह प्रथम शोधपूर्ण ग्रन्थ है। स्थान है। पुस्तक की भूमिका में विद्वान् सम्पादकों ने रत्न परीक्षा १२. क्यामखां रासो-इस ग्रन्थ के मूल रचयिता मुस्लिम कवि सम्बन्धी हिन्दी साहित्य के ग्रन्थों का सविवरण उल्लेख किया है। जान हैं। इसका सम्पादन श्री भँवरलालजी नाहटा ने श्री अगरचन्दजी इसमें चोटी के विद्वानों के लेख भी संग्रहित हैं। परिशिष्ट में नाहटा तथा श्री दशरथ शर्मा के साथ किया है। इसका प्रकाशन नवरत्नपरीक्षा, मोहरांरी परीक्षा इत्यादि देकर पुस्तक को और भी राजस्थान पुरातत्व मंदिर जयपुर की राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला से उपयोगी बनाया गया है। प्रसिद्ध जौहरी श्री राजरूपजी टाँक ने रत्नों संवत् २०१० में हुआ। यह रासो अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। आदि पर प्रकाश डालते हुए इस ग्रन्थ को विश्व साहित्य में अजोड़ इसकी साहित्यिक महत्ता उच्चकोटि की है। इसकी शैली में प्रवाह है। ग्रन्थ बतलाया है। कवि से यथाशक्ति मितभाषिता और सत्य का आश्रय लिया। इसकी १६. मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि-द्वितीय दादा साहब पर एकमात्र प्रति झुंझनू के जैन भण्डार से प्राप्त हुई। शोधपूर्ण प्रस्तुत पुस्तक ६२ वर्ष पूर्व सम्वत् १९९६ में प्रकाशित १३. बीकानेर जैन लेख संग्रह-श्री नाहटाद्वय की कल । अगरचन्द भंवरलाल नाहटा की एक अनुपम कृति है। इसकी कीर्ति को चतुर्दिक् प्रसारित करने वाले ग्रंथरत्नों में से उक्त ग्रन्थ प्रस्तावना दशरथ शर्मा ने लिखी है। श्री अभय जैन ग्रन्थमाला द्वारा भी एक है। ग्रन्थ के प्राक्कथन लेखक श्री वासुदेवशरण अग्रवाल ने प्रकाशित ७६ पृष्ठ की पुस्तक न्यू राजस्थान प्रेस ७३-ए, श्री नाहटाजी के प्रकाण्ड पाण्डित्य, श्रमनिष्ठा और शोधरुचि की चासाधोबापाड़ा स्ट्रीट, कलकत्ता द्वारा मुद्रित है।। भूरि-२ प्रशंसा की है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री अभय जैन १७. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि चरितम्-चतुर्थ दादासाहब ग्रन्थालय के पंचदश पुष्प के रूप में सन् १९५६ में हुआ। इसमें पर प्रस्तुत पुस्तक उपाध्याय श्री लब्धिमुनि विरचित भंवरलाल नाहटा बीकानेर राज्य के २६१७ तथा जैसलमेर के १७१ अप्रकाशित द्वारा सम्पादित संवत् २०२७ में अभयचंद सेठ द्वारा प्रकाशित ६ लेखों का संग्रह है। प्रारम्भ में शोधपूर्ण-विद्वतापरिपूर्ण विस्तृत भूमिका सर्गों में विभक्त कुल १२१२ पद्य और कुछ गद्य भी हैं। १३८ पृष्ठ। दी गई है। परिशिष्ट में वृहद् ज्ञान भण्डार की वसीयत, श्री १८. दादा श्री जिनकुशलसूरि-तृतीय दादासाहब पर प्रस्तुत जिनकृपाचन्द्रसूरि उपाश्रय का व्यवस्थापक और पर्युषणों में पुस्तक अगरचन्द भँवरलाल नाहटा द्वारा लिखित नाहटा ब्रदर्स द्वारा कसाईवाड़ा बन्दी के मुचलके की नकल है। श्री नाहटाजी ने लेख प्रकाशित श्री अभय जैन ग्रन्थमाला का २०वाँ ग्रंथाक सेठ ब्रदर्स संग्रह के क्षेत्र में यह बहुत बड़ा काम किया है। ग्रन्थ के प्रत्येक द्वारा मुद्रित १३२ पृष्ठ की कृति है। प्रस्तावना श्री जिनविजयजी ने शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/१३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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