Book Title: Jain Vidyalay Granth
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 290
________________ इन्द्रभूति गौतम 9 महोपाध्याय विनयसागर अतिरिक्त क्षान्त्यादि सर्वगुण परिपूर्ण, समस्त लब्धियों, सिद्धियों, निधियों के धारक और प्रदाता, सत् विद्या/द्वादशांगी के निर्माता, प्रतिबोधनपटु, चिन्तामणिरत्न एवं कल्पवृक्ष के सदृश अभीष्ट फलदाता, गणाधीश और प्रातः स्मरणीय माना गया है। गुरु-भक्ति में तो इनका नाम उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है। न केवल जैन साहित्य में ही अपितु विश्व साहित्य में भी इस प्रकार का कोई उदाहरण प्राप्त नहीं है कि किसी गुरु ने अपने समग्र जीवन-काल में पद-पद/स्थान-स्थान पर अपने से अभिन्न शिष्य का सहस्राधिक बार नामोच्चारण कर, प्रश्नों के उत्तर या सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया हो। गणधर गौतम ही विश्व में उन अनन्यतम शिष्यों में से हैं कि जिनका चौबीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर अपने श्रीमुख से प्रतिक्षण-प्रतिपल "गोयमा! गौतम!" का उच्चारण/ उल्लेख करते रहे। समग्र जैनागम साहित्य इसका साक्षी है। विश्व चेतना के धनी गुरु गौतम चिन्तन से, व्यवहार से, संघ नेतृत्व से पूर्णरूपेण अनेकान्त की जीवन्त मूर्ति हैं। इनकी ऋतम्भरा प्रज्ञा से, असीम स्नेह से, आत्मीयता परिपूर्ण अनुशासन से, विश्वजनीन कारुण्यवृत्ति से महावीर के संघोद्यान की कोई भी कली ऐसी नहीं है, जो अधखिली रह गई हो! खंतिखमं गुणकलियं सव्वलद्धिसम्पन्न । सन्त प्रवर मुनि रूपचन्द्र के शब्दों में कहा जाय तोवीरस्स पढमं सीसं गोयमसामि नमसामि ।। "प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम! चौदह पूर्वो के अतल श्रुतसागर के पारगामी गौतम! भगवान महावीर के कैवल्य हिमालय से नि:सृत अब्धिलब्धिकदम्बकस्य तिलको नि:शेषसूर्यावले वाणी-गंगा को धारण करने वाले भागीरथ गौतम! विनय और समर्पण रापीडः प्रतिबोधने गुणवतामग्रेसरो वाग्मिनाम् । के उज्ज्वल-समुन्नत शैल-शिखर गौतम! तीर्थंकर पार्श्वनाथ और इष्टान्तो गुरुभक्तिशालिमनसां मौलिस्तपः श्रीजुषां, तीर्थंकर महावीर की गंगा-यमुना-धारा के प्रयागराज गौतम! अद्भुत सर्वाश्चर्यमयो महिष्ठसमय: श्रीगौतमस्तान मुदे ।। लब्धि-चमत्कारों के क्षीर-सागर गौतम! अंगुष्ठे चामृतं यस्य यश्च सर्वगुणोदधिः । गौतम का व्यक्तित्व अनन्त है। जैन-शासन को गौतम का भण्डारः सर्वलब्धदीनां वन्दे तं गौतमप्रभुम् ।। अनुदान अनन्त है। और, अनन्त है सम्पूर्ण मानव जाति को गौतम श्रीगौतमो गणधरः प्रकटप्रभाव:, का सम्प्रदायातीत ज्योतिर्मय अवदान। गौतम के आलेख के बिना सल्लब्धि-सिद्धिनिधिरञ्चितवाक्प्रबन्धः । भगवान महावीर की धर्म-तीर्थ-प्रवर्तन की ज्योति-यात्रा का इतिहास विघ्नान्धकारहरणे तरणिप्रकाशः, अधूरा है। गौतम के उल्लेख के बिना अनन्त श्रुत-सम्पदा पर साहाय्यकृद् भवतु मे जिनवीरशिष्यः ।। भगवान महावीर के हस्ताक्षर भी अधूरे हैं।" गु + अज्ञानान्धकार के, रु + नाशक = गुरु गौतम श्रमण सर्वारिष्टप्रणाशाय सर्वाभीष्टार्थदायिने । भगवान महावीर के प्रथम शिष्य/प्रथम गणधर हैं। गण के संस्थापक सर्वलब्धिनिधानाय गौतमस्वामिने नमः ।। तीर्थंकर होते हैं और उसके संवाहक गणधर कहलाते हैं। अथवा भारतीय समाज में विघ्नोच्छेदक एवं कल्याण-मंगल-कारक के । आचार्य मलयगिरि के शब्दों में कहा जाय तो अनुत्तर ज्ञान एवं रूप में जो सर्वमान्य स्थान गणपति/गणेश का है उससे भी अधिक अनुत्तर दर्शन आदि धर्म समूह/गण के धारक कहलाते हैं। ऐसे एवं विशिष्टतम स्थान जैन समाज तथा जैन साहित्य में गणधर गौतम यथार्थरूप में गणधर पदधारक गौतम का नाम वस्तुत: इन्द्रभूति है। स्वामी का है। जैन परम्परा में तो इन्हें विघ्नहारी मंगलकारी के इनका यह नाम भी यथा नाम तथा गुण के अनुरूप ही है; क्योंकि शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/१११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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