________________
गोपाल कृष्ण
परिस्थितियाँ पैदा हुईं, भारतीय ऋषि-मुनियों तथा महान् मनीषियों ने विशेष रूप से सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया और मानवता की रक्षा की। हमारा देश संतुलित सृष्टि और सन्मार्ग का प्रमुख केन्द्र रहा है एवं वैज्ञानिकों ने भी मानव-जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने में सराहनीय कदम बढ़ाया है।
मानव विवेकशील प्राणी है लेकिन कुछ विवेकशून्य मानवों ने अपने स्वार्थलिप्सा के लिए प्राकृतिक संसाधनों को विकृत किया। फलतः इन दिनों कभी-कभी प्राकृतिक रूप से भी विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, अर्थात् अतिवृष्टि-अनावृष्टि, बाढ़- . सूखा एवं भूकम्प आदि का सामना कर मानव जीवन विषम स्थिति को झेलता हुआ अभावग्रस्त हो जाता है। आधुनिक काल 'वैज्ञानिक युग' के नाम से जाना जा रहा है। इसमें कुछ अनेक अत्याधुनिक आविष्कार करके मानव जीवनशैली को एक नया मोड़ दिया। यह एक विशिष्ट योगदान माना जाता है। दुनिया का प्रत्येक भूभाग बहुत निकट प्रतीत हो रहा है क्योंकि क्षणमात्र में हम अपने परिजनों से वार्तालाप कर सकते हैं तथा कुछ ही घंटों में एक-दूसरे का
साक्षात्कार भी कर लेने में सक्षम हैं। दूसरे शब्दों में यह कहें कि मानवता और आतंकवाद
"मानव का जीवन स्तर काफी उन्नतशील हो गया है तो कोई इस संसार का रचना प्रकृति का अनुपम कृति है। प्रकृति न अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस धरातल को बड़े ही संतुलित ढंग से सजाया और सँवारा है।
इन सभी कृत्रिम संसाधनों के साथ-साथ हमारे वैज्ञानिकों ने कहीं अथाह सागर तो कहीं उच्चतम् हिमाच्छादित पर्वत, कहीं सुन्दर
कुछ विध्वंसक सामग्री का भी आविष्कार किया। आज इन्हीं हरियाली युक्त मैदान तो कहीं आकर्षक मनमोहक जल प्रपात।
"विस्फोटकों' का दुरुपयोग 'आधुनिक असुर-आतंकवादी' ने करके विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूल-फल एवं उन पर अठखेलियाँ
मानव जीवन को नारकीय बना डाला है। इन दिनों आतंकवादी करती तितलियाँ आदि। कहीं विशाल रेगिस्तान तो कहीं सपाट
गतिविधियाँ इस प्रकार बढ़ गई हैं कि मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो पठार, षट् ऋतुओं से युक्त विभिन्न प्रकार के मौसम और उनसे
रहा है। फलत: सम्पूर्ण प्राकृतिक सृष्टि ही खतरे में नजर आने लगी संबंधित फसल-फल एवं फूल आदि। इस प्रकार नाना प्रकार के
है। हम यह कहने के लिए बाध्य हो रहे हैं कि-"मानवता का लोप जीव-जंतुओं की संरचनाओं से भरी पड़ी यह धरती।
हो रहा है तथा दानवी प्रवृत्ति का विकास हो रहा है और शायद । इन्हीं सम्पूर्ण रचनाओं में से एक विशिष्ट एवं अमूल्य रचना
दानवी प्रवृति का ही दूसरा नाम 'आतंकवाद' है। जो वर्तमान को है-मानव। इन्हीं मानवों में कुछ विशिष्ट मानव भी पैदा हुए जिन्होंने
अपने चंगुल में समेटे हुए है।" इन प्राकृतिक संसाधनों को एक नया आयाम देकर समस्त मानवों
कभी-कभी ऐसा एहसास होता है कि क्या मानवीय के लिए नैसर्गिक सुख प्रदान किया।
आवश्यकताओं का विकल्प 'आतंकवाद' ही है? शायद नहीं! आधुनिक समय में इस सुनहले, सुखमय और शांतिमय
'यदि यही विकल्प होता तो आतंकवाद ही आदर्श होता।' लेकिन जीवन को खोखला बनाने के लिए एक आसुरी शक्ति पैदा हो गई
कुछ कुत्सित भावनाओं से ग्रसित लोगों ने ऐसा आदर्श बनाया है है जो 'आतंकवाद' के नाम से जानी जाती है।
और प्रकृति की इस सुन्दरतम् रचनाओं को खोखला बनाने पर तुला 'मानवता' ही परोपकार का दूसरा नाम है। संसार के सभी ।
हुआ है। जीवों के प्रति सम्मान का भाव रखनेवाला एकमात्र मानव ही तो है।
शायद इन आतंकवादी असुरों का मानना है कि सर्वत्र भय इस मानव जाति के इतिहास में हमारे देश के लोगों का योगदान
योगदान
औरत
और दहशत का वातावरण उपस्थित कर वे लोग अपने जीवन के 'विशिष्ट मानव' के रूप में रहा है। जब-जब इस संसार में विषम- जल
लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन प्राचीन इतिहास साक्षी है कि
विद्यालय खण्ड/२४
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org