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का मार्ग है। यह समझते-बूझते हुए भी विषय-भोग में सुख मानना और प्रकार की होती है। यह बात प्राय: सभी जानते है कि जैसी भावना जब संतान उत्पन्न हो तो उसका निरोध करने के लिए कृत्रिम उपाय होती है, वैसा स्वप्न आता है। इसी प्रकार संतान के विषय में माताकाम में लाना घोर अन्याय है। वीर्य को वृथा बर्बाद करने के समान पिता की भावना जैसी होती है, वैसी ही सन्तान बन जाती है। जिस दूसरा कोई अन्याय नहीं है।
प्रकार भावना से स्वप्न का निर्माण होता है, इसी प्रकार भावना से हमारे अन्दर जो शांति और साहस है, वह वीर्य के ही प्रताप से संतान के विचारों और कार्यों का निर्माण होता है। नीच विचार करने है। अगर शरीर में वीर्य न हो तो मनुष्य हलन-चलन गमनागमन आदि से खराब स्वप्न आता है और यही बात संतान के विषय में भी समझनी क्रियाएँ करने में भी समर्थ नहीं हो सकता।
चाहिये। संतान के विषय में तुम जैसी भावना लाओगे, आगे चलकर ४-ब्रह्मचर्य का महत्व
संतान वैसी ही बन जायेगी। अतएव सन्तान के लिए और अपने लिए जो भाई-बहिन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे वे संसार को अनमोल ब्रह्मचर्य की भावना निरन्तर करनी चाहिये। रत्न प्रदान करने में समर्थ हो सकेंगे। हनुमानजी का नाम कौन नहीं
७-दूसरा नियम जानता? आलंकारिक भाषा में कहा जाता है कि उन्होंने लक्ष्मणजी के ब्रह्मचर्य का दूसरा नियम भोजन-सम्बन्धी विवेक है। कुछ लोग लिए द्रोण पर्वत उठाया था। उसी पर्वत का एक टुकड़ा गिर पड़ा, जो ऐसा समझते हैं कि जिस खानपान में आनन्द आता है, वही भोजन गोवर्धन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलंकार का आवरण दूर कर दीजिए अच्छा है, पर यह मान्यता भ्रमपूर्ण है। ब्रह्मचारी के भोजन में और
और विचार कीजिये तो इस कथन में हनुमानजी का प्रचण्ड शक्ति का अब्रह्मचारी के भोजन में बड़ा अन्तर होता है। गीता में रजोगुणी, दिग्दर्शन आप पाएँगे। हनुमानजी में इतनी शक्ति कहाँ से आई? यह तमोगुणी और सतोगुणी का भोजन अलग-अलग बताया है। पर आज महारानी अंजना और महाराज पवनजी का बारह वर्ष की अखण्ड के लोग जिह्वा के वशवर्ती बनकर भोजन के गुलाम हो रहे हैं। यदि ब्रह्मचर्य की साधना का प्रताप था। उनके ब्रह्मचर्य पालन ने संसार को तुम अपनी जीभ पर भी अंकुश नहीं रख सकते तो तुम आगे किस एक ऐसा उपहार, ऐसा वरदान दिया, जो न केवल अपने समय में ही प्रकार बढ़ सकोगे? विद्याभ्यास और शास्त्र श्रवण का फल यही है कि अद्वितीय था, वरन् आज तक भी वह अद्वितीय समझा जाता है और बुरे कामों की प्रवृत्ति न की जाय। आजकल खान-पान के सम्बन्ध में शक्ति की साधना के लिए उसकी पूजा भी की जाती है। बड़ी भयंकर भूलें हो रही हैं और हालत ऐसी जान पड़ती है मानो
बहिनों! अगर तुम्हारी हनुमान सरीखा शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न विद्याभ्यास का फल खानपान का भान भूल जाना ही हो। करने की साध है तो अपने पति को कामुक बनाने वाले साज-सिंगार
८-विनाश के कारण और हावभाव त्याग कर स्वयं ब्रह्मचर्य की साधना करो और पति को वीर्यनाश का एक कारण एक ही कमरे में, एक ही बिछौने पर भी ब्रह्मचर्य पालन करने दो।
स्त्री पुरुष का शयन करना भी है। एक ही कमरे में और एक शय्या ५-ब्रह्मचर्य ही जीवन है
पर सोने से वीर्य स्थिर नहीं रह सकता। शास्त्र में जहाँ स्त्री और पुरुष अपूर्ण ब्रह्मचर्य केवल वीर्यरक्षा को कहते हैं। वीर्य वह वस्तु है के सोने का वर्णन मिलता है वहाँ ऐसा ही वर्णन मिलता है कि स्त्री जिसके सहारे सारा शरीर टीका हुआ है। यह शरीर वीर्य से बना भी और पुरुष अलग-अलग शयनागार में सोते थे। पर आज इस विषय है। अतएव आँखें वीर्य हैं। कान वीर्य हैं। नासिका वीर्य है। हाथ पैर में नियम का पालन होता नजर नहीं आता। वीर्य हैं। सारे शरीर का निर्माण वीर्य से हुआ है, अतएव सारी शरीर निष्क्रिय बैठे रहना भी वीर्यनाश का एक कारण है। जो लोग वीर्य है। जिस वीर्य से सम्पूर्ण शरीर का निर्माण होता है उसकी शक्ति अपने शरीर और मन को किसी सत्कार्य में संलग्न नहीं रखते, उन क्या साधारण कही जा सकती है? किसी ने ठीक ही कहा है- लोगों का वीर्य भी स्थिर नहीं रह सकता। यदि शरीर और मन को मरण बिन्दुपातेन, जीवन बिन्दुधारणात् ।
निष्क्रिय न रखा जाय तो वीर्य को हानि नहीं पहँचती। ६-अपूर्ण ब्रह्मचर्य का प्रथम नियम
रात्रि में देर तक जागरण करना, सूर्योदय के बाद भी सोते रहना अपूर्ण ब्रह्मचर्य के दस नियमों में पहिला नियम भावना है। माता- और अश्लील साहित्य का पढ़ना, ये सब भी वीर्यनाश के कारण हैं। पिता को ऐसी भावना लानी चाहिए कि मेरा पुत्र वीर्यवान् और जगत् अश्लील चित्र देखने से और अश्लील पुस्तकें पढ़ने से भी वीर्य स्थिर का कल्याण करने वाला बने। इस प्रकार की भावना से बहुत लाभ नहीं रहता। आज जहाँ-तहाँ अश्लील पुस्तकें पढ़ने और अश्लील होता है। आप लोगों को अलग-अलग तरह के स्वप्न आते होंगे। चित्र देखने का प्रचार हो गया है। आजकल लोग महापुरुषों और इसका कारण क्या है? कारण यही है कि सब की भावना भिन्न-भिन्न महासतियों के जीवन चरित्र पढ़ने के बदले अश्लीलतापूर्ण पुस्तकें
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्वत खण्ड/७
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