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विद्वानों का मत है कि ब्रह्मचर्य के बिना विद्या प्राप्त नहीं होती। विद्या प्राप्ति के लिए ब्रह्मचर्य का होना आवश्यक है। अथर्ववेद में कहा है
ब्रह्मचर्येण विद्या |
'ब्रह्मचर्य से विद्या प्राप्त होती है।' विदुर नीति में कहा है
विद्यार्थी ब्रह्मचारी स्थात् !
'यदि विद्या के इच्छुक थे तो ब्रह्मचारी बनो।'
तात्पर्य यह कि ब्रह्मचर्य, लौकिक और लोकोत्तर, दोनों ही सुखों का प्रधान साधन है। इसकी पूर्ण रूपेण प्रशंसा करना तो समुद्र को हाथों के सहारे तैरने का साहस करना है।
७- ब्रह्मचर्य पर अपवाद
कुछ लोगों का कथन है कि पूर्ण ब्रह्मचारी को मोक्ष या स्वर्ग प्राप्त नहीं होता क्योंकि पूर्ण ब्रह्मचारी निःसंतान रहते हैं औरअपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गो नैव च नैव च । 'पुत्रहीन की गति नहीं होती और स्वर्ग तो कभी भी नहीं मिलता है।'
इस श्लोक से पूर्ण ब्रह्मचारी को स्वर्ग-मोक्ष प्राप्ति से वंचित बताया जाता है, लेकिन इस श्लोक को खण्डन करने वाला दूसरा यह प्रमाण भी है
शिक्षा एक यशस्वी दशक
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स्वर्गे गछन्ति ते सर्वे ये केचिद् ब्रह्मचारिणः । "जितने भी ब्रह्मचारी है, वे सब स्वर्ग को जाते हैं और भी कहा है कि
अनेकानि सहस्त्राणि, कुमारब्रह्मचारिणाम् । दिवं गतानि राजेन्द्र, अकृत्वा कुलसन्ततिम् ॥
हे राजन् ! हजारों मनुष्य ऐसे हुए हैं जो आजीवन नैष्ठिक ब्रह्मचारी रह कर कुल सन्तति को न बढ़ाते हुए भी दिव्य गति को प्राप्त हुए हैं।
जैन- शास्त्रानुसार स्वर्ग प्राप्ति कोई बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात तो मोक्ष प्राप्त करना है। ब्रह्मचर्य से संसार की सभी ऋद्धि मिल जाय, स्वर्ग का राज्य भी प्राप्त हो जाय तब भी यदि इसके द्वारा मोक्ष प्राप्त न हो सकता होता तो जैन शास्त्र इसे धर्म का अंग न मानते, क्योंकि जैनशास्त्र उसी वस्तु को उपयोगी और महत्व की मानते हैं, जिसके द्वारा मोक्ष प्राप्त हो। लेकिन उक्त प्रमाण जिन ग्रन्थों के हैं, वे ग्रन्थ स्वर्ग को ही अन्तिम ध्येय मानते हैं फिर भी ऊपर दिये हुए श्लोकों में से पहला श्लोक दूसरे श्लोक से अप्रामाणिक उतरता है।
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विद्वत खण्ड / १३
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