Book Title: Jain Vidyalay Granth
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 255
________________ इन सबकी आधुनिक वनस्पति विज्ञान की शब्दावली में (बाल जाति), (५) इक्षु (गला आदि), पर्ववाली वनस्पति पहचान की जा सकती है। (६) दर्म (डाभ आदि तृण-घास जाति), (७) अभ्र (घास __भगवतीसूत्र में आठवें शतक के तीसरे उद्देशक का विशेष) एवं (८) तुलसी।। नाम ही रुक्ख शत्तक है। अर्थात् इसमें वृक्ष के सम्बन्ध में ही ___ इस प्रकार भगवतीसूत्र से वनस्पति विज्ञान के सम्बन्ध में विवेचन किया गया है। इस विवरण में वृक्षों का वर्गीकरण और अधिक सामग्री भी एकत्र की जा सकती है। भगवतीसूत्र तीन प्रकार से किया गया है।" में केवल वनस्पति के सम्बन्ध में ही नहीं, जीवन विज्ञान एवं (१) संख्यात जीव वाले वृक्ष, (the plant with numerable परमाणु विज्ञान के सम्बन्ध में भी सामग्री उपलब्ध है। ज्योतिष beings) एवं गणित विषयक पर्याप्त उल्लेख इस ग्रन्थ में प्राप्त हैं। प्रो० ताड़ (palm treo), तमाल (dark barked xanthochymus जे. सी. सिकदर ने इस विषय में अपना शोधकार्य प्रस्तुत puctorius), तक्काली (pimentaacris), तेतलि किया है। फिर भी विस्तार से और तुलनात्मक दृष्टि से अभी {temarind), नारिकेल (coconut) आदि। शोध करने की आवश्यकता बनी हुई है। (२) असंख्यात जीव वाले वृक्ष (the plant in which there are . सन्दर्भ innumerable beings) इन्हें पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है- १. स्टडीज इन द भगवतीसूत्र-डॉ० जे०सी० सिकदर, वैशाली अ) एक अस्तिकाय (one seeded) १९६४। नीम, आम, जामुन, पलाश, बकुल, करंज, साल २. आचारांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कन्ध, उद्देशक ५ ३. जैन आगमों में वनस्पति-विज्ञान (पं० कन्हैयालाल लोढा) ब) बहुबीजका (many seeded) ४. तेण परं जोणी पमिलाति, तेण परं जोणी पंविद्धंसति, तेण परं, अमरूद, दाडिम, तिन्दुका, आंवला, बेल, बीए अबीए भवति, तेण परं जोणिवोच्छेदे पन्नत्ते समणाउसो। आनानास, बट --भगवतीसूत्र, शत्तक - ६, उ. ७ (पृ ७३)। (३) अनन्त जीव वाले वृक्ष (The tree with infinite ५. गोया, गिम्हासु णं बहवे उसिणजोणिया जीवा य पुग्गला य beings) वणस्सतिकाइयत्ताए वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववज्जति, १-आलुक, २-मूलक, ३-शृगबेर अदरक इत्यादि २३ एवं खलु गोयम । गिम्हासु बहवे वणस्सतिका इया पत्तिया पुष्फिया प्रकार की कंदमूल आदि वनस्पतियां हैं। जाव चिटंति। - भगवतीसूत्र, शत्तक - ७,उ ३ (पृ० १३७)। प्रज्ञापनासूत्र में इस प्रकार के वृक्षों का विशेष विवरण गोयमा, मूला मूलजीवफुडा पुढविजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेति दिया गया है। पद सूत्र ४७ गाथा ३७-३८। इस प्रकार का तम्हा परिणामेंति। कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपडिबद्धा तम्हा वर्गीकरण आधुनिक वनस्पति विज्ञान से प्रमाणित होता है। आहारेति, तम्हा परिणामेति। एवं जाव बीया बीय जीव फुडा भगवतीसूत्र के २१, २२ एवं २३शतक विभिन्न फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेति, तम्हा परिणामेति। - भगवतीसूत्र शत्तक - ६, उ. ७ (पृ० १३८) जातियों की वनस्पतियों के विविध वर्गों के मूल से लेकर ७. भगवतीसूत्र, शत्तक-६, उ. ७ पृ० १३९ सम्पादक - युवाचार्य बीज तक के विषय में प्रकाश डालते हैं। इस प्रसंग में । श्री मधुकर मुनि, ब्यावर वनस्पति जगत के साथ कम प्रक्रिया, लेश्या, आहार, ज्ञान, गोयमा. तिविहां रूक्खा पणत्ता - तं जहा - संखेज्जजीविया, गति. मत्य आदि के सम्बन्धों का समाधान किया गया है। असंखेज्जजीविया, अणंतजीविया। - भगवतीसूत्र, शत्तक - यहां पर वृक्ष के १० अंगों का विवेचन भी है। (१) ८, उ. ३ (पृ २९५) मूल, (२) कन्द (३) स्कन्द (४) त्वचा छाल (५) शाखा ९. ए टेक्सबुक आफ इकोनोमिक बाटनी (डॉ० वी० वर्मा, दिल्ली (६) प्रवाल (७) पत्र (८) पुष्प' (९) फल एवं (१०) १९८८) बीज। ये अंग वनस्पति-विज्ञान में आज भी स्वीकत हैं। १०.सालि कल अयसि वंसे उक्खू दब्मे अब्भ तुलसीय। भगवतीसूत्र में सभी वनस्पतियों को आठ वर्गों में विभक्त अद्वैते दसवग्गा असीति पुण होति उद्देसा।। किया गया है - - भगवती सूत्र शत्तक २१ गाथा (१) शालि (धान्य जाति) (२) कलाय (मटर आदि प्राध्यापिका, जीव विज्ञान विभाग दालों का वर्णन) (३) अलसी (तिलहन जाति) (४) वंस अम० बी० पटेल साइंस कॉलेज, आनन्द (गुजरात) विद्वत् खण्ड/७६ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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