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डॉ० रचना जैन .
कोशिकाओं वाले हैं व कुछ असंख्यात्मक व अनन्त कोशिकाओं वाले हैं। इस प्रकार के विभाजन आधुनिक वनस्पति-शास्त्र में भी उपलब्ध हैं। भगवतीसूत्र में वृक्ष के मूल, कन्द, स्कन्ध, बीज, फल, पुष्प आदि अनेक भागों का विश्लेषण भी दिया गया है। इस ग्रंथ में वनस्पति में संवेदन क्रिया पायी जाती है। इसका उल्लेख भी है, जिसका प्रमाणीकरण विज्ञान के क्षेत्र में प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस स्थापित कर चुके हैं। वनस्पति जीवों की रक्षा करने की प्रेरणा भी इस ग्रंथ में दी गई है। इन प्रमुख बिन्दुओं पर प्रस्तुत लेख में विचार करने का प्रयत्न किया गया है। वनस्पतियों में जीवन :
भगवतीसूत्र में वनस्पति विज्ञान से सम्बन्धित अनेक प्रसंग हैं। वनस्पति में जीव होते हैं इस बात को प्रमाणित करने के लिये इस ग्रन्थ के उस प्रसंग से जानकारी प्राप्त होती है जिसमें भगवान महावीर और गोशालक के बीच तिल के पौधे के विषय में प्रश्नोत्तर हुआ था। जब ये दोनों सिद्धार्थ
नगर से कूर्मग्राम की ओर जा रहे थे तब एक स्थान पर पत्रप्राकृत आगम साहित्य में पुष्प युक्त हरे-भरे तिल के पौधे को देख कर गोशालक ने
भगवान महावीर से पूछा कि इस तिल के पौधे के पुष्पों के
जीव मर कर कहां उत्पन्न होंगे और यह पौधा पूरा विकास जैन आगमों में आधुनिक विज्ञान की पर्याप्त सामग्री प्राप्त करेगा या नहीं? महावीर ने कहा कि इस तिल के ये उपलब्ध है। कुछ विद्वानों ने इस क्षेत्र में कार्य भी किया है। सात फूल मर कर इसी तिल के पौधे की एक तिल फली भगवतीसूत्र में भी आधुनिक विज्ञान के कई तथ्य उपलब्ध हैं। में सात तिलों के रूप में उत्पन्न होंगे। महावीर की इस बात डॉ० जे.सी. सिकदर ने इस विषय पर अपने शोधप्रबन्ध में को मिथ्या सिद्ध करने के लिए गोशालक ने थोड़ा पीछे संक्षेप में प्रकाश डाला है। भगवतीसूत्र के विभिन्न संस्करण रुककर चुपचाप उस पौधे को मिट्टी और जड़ सहित वहीं के सम्पादकों ने भी इस प्रकार के संकेत दिये हैं। उन सबका फेंक दिया और आगे निकल गया। थोड़े समय बाद वहां गहराई से अध्ययन किया जाना आवश्यक है।
वर्षा हुई और वह तिल का पौधा वहीं पर फिर मिट्टी के जैन आगमों में वनस्पति-शास्त्र की पर्याप्त सामग्री बीच पनप गया और जब वह गोशालक बाद में उस रास्ते उपलब्ध है। भगवान महावीर और गौशाल मंखलीपुत्र के से वापस लौटा तो उसे उस तिल के पौधे में तिल की फली बीच हुये संवाद में पौधे और उनके विकास के सम्बन्ध में और उसमें सात तिल प्राप्त हुये। इसलिये यह सिद्ध हुया कि प्रकाश डाला गया है। विभिन्न प्रकार के धान्य, जौ, दालें एवं वनस्पतिकायक जीव मर-मर कर उसी वनस्पति काय के अन्य तिलहनों के पौधों के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ में बताया शरीर में पुनः उत्पन्न हो जाते हैंगया है कि कम से कम अन्तर्मुहूर्त व अधिक से अधिक एवं खलु गोसाला। वणस्सतिकाइया पउपरिहारं परिधति सात वर्ष का समय बीज, बीज से पौधे के रूप में आने में
(शतक १५ उद्देशक।) लगा सकते हैं। जैन आगमों में यह भी बताया गया है कि इस भगवतीसूत्र में अन्यत्र भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु विभिन्न ऋतुओं में कौन-कौन से पौधे उत्पन्न होते हैं। गर्म व और वनस्पतिकाय में जीवन शक्ति है, इसका प्रतिपादन ठण्डी जलवायु का भी पौधों के विकास पर प्रभाव पड़ता है। किया गया है। इसके पूर्व भी आचारांगसूत्र में वनस्पति में
जैन आगमों में पौधों के भोजन के सम्बन्ध में भी सामग्री जीव होने के सात लक्षण प्रतिपादित किये गये हैं। दी गई है। ग्रंथ में कहा गया है कि कुछ पौधे संख्यात्मक
विद्वत् खण्ड/७४
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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