Book Title: Jain Vidyalay Granth
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

Previous | Next

Page 267
________________ इसमें उतना ही अधिकार रखती हैं, जितना पुरुष।' उनके अनुसार भारत के नये नेता, राजस्थानी रनिवास, बचपन की स्मृतियाँ, अतीत शंकराचार्य को देश की चारों दिशाओं की यात्रा ने ही, घुमक्कड़ी से वर्तमान, स्टालिन, कार्ल मार्क्स, लेनिन, माओत्से-तुंग, घुमक्कड़ धर्म ने ही, बड़ा बनाया। इसी प्रकार रामानन्द, चैतन्य, ईसा, स्वामी, असहयोग के मेरे साथी, जिनका मैं कृतज्ञ, वीर चंद्रसिंह गुरुनानक, दयानन्द आदि भी इसी धर्म के बल-बूते पर महान् हुए गढ़वाली। हैं। इसीलिए राहुल ने घुमक्कड़ धर्म को संसार का 'अनादि सनातन यात्रा और भ्रमण से संबंधित अन्य कृतियाँ हैं- सोवियत भूमि धर्म' कहा है और उसे 'आकाश की तरह महान् और समुद्र की (१,२), सोवियत मध्य एशिया, किन्नर देश, दाजिलिंग परिचय, तरह निशाल' माना है। उनकी धारणा है कि "घुमक्कड़ी के लिए कुमाऊँ, गढ़वाल, नेपाल, हिमाचल प्रदेश, जौनसार-देहरादून, चिन्ताहीन होना आवश्यक है और चिन्ताहीन होने के लिए घुमक्कड़ी आजमगढ़-पुरातत्व।। आवश्यक है। दोनों अन्योन्याश्रय होना दूषण नहीं भूषण है।' इसी राहुलजी ने घुमक्कड़ी के मार्ग में धन-संपत्ति की अपेक्षा बललेख में वे स्पष्ट करते हैं कि घुमक्कड़ धर्म की 'दीक्षा वही ले बुद्धि की महत्ता पर बल दिया है- “घुमक्कड़ को जेब पर नहीं सकता है, जिसमें बहुत भारी मात्रा में हर तरह का साहस हो।' लेख अपनी बुद्धि बाहु और साहस पर भरोसा रखना चाहिए।" (घुमक्कड़ का समापन करते हुए वे इस्माइल मेरठी की दो पंक्तियाँ का हवाला शास्त्र, पृष्ठ २५)। परन्तु इसी कृति में लेखक ने घुमक्कड़ी को देते हैं हल्के रूप में ग्रहण करने वालों को सचेत करते हुए उनके दायित्व सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ, को भी रेखांकित किया है- "घुमक्कड़ को समाज पर भार बनकर जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी कहाँ । नहीं रहना है। उसे आशा होगी कि समाज और विश्व के हरेक देश अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़े हुए इस शेर ने राहुल को बचपन के लोग उसकी सहायता करेंगे लेकिन उसका काम आराम से से ही यात्रा की ओर उन्मुख कर दिया था। घूमने-फिरने में व्यापक भिखमंगी करना नहीं है। उसे दुनिया से जितना लेना है, उससे सौ रुचि का कारण नाना-नानी के यहाँ लालन-पालन भी माना जा गुना अधिक देना है। जो इस दृष्टि से घर छोड़ता है वही सफल और सकता है। सेना में सिपाही के रूप में उनके नाना ने दक्षिण भारत यशस्वी घुमक्कड़ बन सकता है।" का व्यापक भ्रमण किया था। अवकाश ग्रहण के बाद नाती केदार घुमक्कड़ी के लिए उपयुक्त आयु और अनिवार्य शैक्षणिक (राहुल) को नाना के मुख से अतीत के रोचक यात्रा-वृत्तान्तों को योग्यता का विवेचन करते हुए राहुलजी ने अपने अनुभव से यह सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। बताया है कि, "जिस व्यक्ति में महान घुमक्कड़ का अंकुर है, उसे घर छोड़कर यात्रा के प्रति आकृष्ट होने का एक बड़ा कारण । चाहे कुछ साल भटकना ही पड़े, किन्तु किसी आयु में भी निकलकर था अल्पावस्था में उनका बेमेल विवाह। अपनी वायु से ५ वर्ष बड़ी वह रास्ता बना लेगा। इसलिए मैं अधीर तरुणों के रास्ते में रुकावट पत्नी को पाकर वे अन्यमनस्क होकर उमरपुर के बाबा परमहंस के डालना नहीं चाहता। लेकिन ४० साल की घुमक्कड़ी के तजुर्बे ने पास बैठने लगे। बाबाजी ने राहुल को संसार भ्रमण का परामर्श मुझे बतलाया है कि यदि तैयारी के समय को थोड़ा पहले ही बढ़ा दिया। इन सभी बातों ने मिलकर केदार को घुमक्कड़ बना दिया। दिया जाय तो आदमी आगे बड़े लाभ में रहता है।'' (घुमक्कड़ भ्रमण के प्रति इस आकर्षण ने राहुल को जीवन और जगत शास्त्र पृ० ३०) के व्यापक अनुभव की जानकारी दी। इसे उलटकर यों भी कह लेखक ने घुमक्कड़ के लिए इतिहास और भूगोल-ज्ञान की सकते हैं कि जीवन और जगत के बारे में अपनी जिज्ञासा के कारण अनिवार्यता की ओर तो संकेत किया ही है, भाषाओं और जलवायु ही उन्होंने घुमक्कड़ी वृत्ति अपनायी। (जो भी हो इस रुझान ने जिन की जानकारी को भी आवश्यक बताया है। उन्होंने लिखा है कि ग्रन्थों से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया, वे हैं- मेरी लद्दाख यात्रा, घुमक्कड़ का यात्रा साधनों की सुविधा के प्रति आग्रही होना लंका, तिब्बत में सवा वर्ष मेरी यूरोप यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, यात्रा अयोग्यता है। उसे तो पीठ पर सामान लादकर चलने का जीवट के पन्ने, जापान, ईरान, रूस में पच्चीस मास, घुमक्कड़ शास्त्र, रखना चाहिए और बैलगाड़ी-खच्चर से लेकर हवाई जहाज तक की एशिया के दुर्गम खण्डों में। इन कृतियों को यात्रा साहित्य के अंतर्गत यात्रा पर अवलंबित रहना चाहिए। उसका शरीर 'कष्टक्षम' ही नहीं परिगणित किया जाता है। 'परिश्रमक्षम' भी होना चाहिए। स्वावलंबन पर बल देते हुए राहुल जीवनी साहित्य के अंतर्गत उनकी निम्नलिखित पुस्तकें रखी लिखते हैं- "घुमक्कड़ में और गुणों के अतिरिक्त स्वावलंबन की जा सकती हैं- मेरी जीवन यात्रा (१, २) सरदार पृथिवी सिंह, नये मात्रा अधिक होनी चाहिए। सोने और चाँदी के कटोरों के साथ पैदा विद्वत खण्ड/८८ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326