________________
ये लोकनाट्य सर्वसाधारण के जीवन से अपना सम्बन्ध सम्प्रेषण माध्यम के रूप में मानव शरीर के उपयोग की रखते हैं और मनोरंजन के साथ ही जनशिक्षण का कार्य भी प्राचीनतम कला भी। इनकी प्रस्तुति में सामाजिक जीवन की करते हैं। लोक के नाटकों की यह सबसे बड़ी विशेषता है महत्त्वपूर्ण घटनाएं अथवा महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियां उजागर कि वे दुर्गुणों पर सद्गुणों की विजय की अभिव्यक्ति होते होती हैं। भावनाओं की अभिव्यक्ति और भावोद्रेक के लिए हैं और प्रायः स्थापन इसी फलिर्ता के साथ होता है। मानव जीवन को नृत्य एक नैसर्गिक माध्यम है। यह किसी एक
लोकनाटकों की भी अपनी लोकभाषा है। इनमें रूढियां, व्यक्ति की उपज नहीं बल्कि समष्टि की संरचना है। सदियों पूर्व लोकाचार, परिपाटियां, कथा-आख्यान के साथ-साथ वार्ता मनुष्य अपने आनन्द मंगल के कारण अंग भंगिमाओं का जो
और विश्वास भी संवाद रूप में उपस्थित होते हैं। लोक के अनियोजित प्रदर्शन करता रहा, वही धीरे-धीरे आयोजन नाटकों की यह भी एक विशिष्टता है कि उनमें बनाव और नियोजन के साथ लोकनृत्यों के रूप में सामने आया। श्रृंगार के मुकाबले वागाभिव्यक्ति की वरीयता हासिल होती लोक नृत्यों के कई रूप हैं - है। लोकनाट्यों के कलाकार वाग्विदग्धता तथा तात्कालिक १) स्वान्तसुखाय लोकनृत्य संवाद सर्जन एवं बारस्खलन में दक्ष होते हैं और यह भी अति २) आनुष्ठानिक लोकनृत्य वैशिष्ट्य है कि वे कहीं प्रशिक्षण प्राप्त किये नहीं होते हैं। ३) श्रम साध्य लोकनृत्य आज के नाट्यकर्मी जहां एक-एक संवाद को रटने अथवा ४) सामाजिक लोकनृत्य डबिंग का सहारा लेते हैं, वहीं लोकजीवन के कलाकार ५) मनोरंजनात्मक लोकनृत्य स्वयंमेव सिद्ध होते हैं।
इन रूपों के बावजूद लोकनृत्यों के लिए यह कहा जा राजस्थान में लोकनाट्यों के मूलतः दो रूप होते हैं - सकता है कि उनमें लोकजीवन की परम्परा, उसके संस्कार १) लघु प्रहसन, जिसमें रम्मत, भवाई, रावल, रासधारी, तथा जनता का आत्मिक विश्वास निहित होता है जिसे बाद
हेला, स्वांग, महरण तथा बहुरूपियों के संवादी ख्याल । में आध्यात्मिक विश्वास का नाम दे दिया गया। ये लोकनृत्य लिए जा सकते हैं।
सामूहिक अभिव्यक्ति होते हैं और सर्वगम्य तथा सर्व २) गीतिनाट्य, जिसमें वैवाहिक अवसरों पर किये जाने सुलभता योग्य सहजता लिए होते हैं। एक प्रकार से ये
वाले टूटियां के ख्याल, गवरी के गीताधारित खेल, माच लोकनृत्य सामूहिक अनुरंजन के साथ-साथ लोकशिक्षण के के खेल व अन्य ख्याल शामिल हैं।
भी सशक्त माध्यम हैं। यहां तुर्राकलंगी के ख्याल, कुचामणी ख्याल, शेखावाटी राजस्थान में घूमर, घाटाबनाड़ा, पणिहारी, तेराताली, के ख्याल, मेवाड़ी ख्याल, नौटंकी के ख्याल, कलाबक्षी गणगौर, मोरबंद, कांगसिया जैसे नृत्य गुजरात के भवाई, ख्याल, किशनगढ़ी ख्याल, चिड़ावी ख्याल, कठपुतली ख्याल, डांडिया, गरबारास, कश्मीर के रुफ, वाट्टल, घूमाल, बांड, हत्थरसी ख्याल, गंधर्वो के ख्याल, नागौरी ख्याल, कड़ा ख्याल पाथेर व मुखौटा नृत्य, पंजाब के भांगड़ा, गिद्दा, लूद्दी झूमर एवं झाड़शाही ख्यालों की अपनी विशिष्ट विरासत रही है। और चीना, हरियाणा के डंडा, छठी, हिमाचल प्रदेश के नाटी,
इसी प्रकार यहां लीलाओं की भी अपनी सुदीर्घ परम्परा घोड़ायी, डांगी, नाट, फुरेही व फराटी, किन्नौर के बोयांग्चू, देखने को मिलती है। सम्भवत: ये लीलाएं धार्मिक अथवा गद्दी, उत्तरप्रदेश के चांचरी, रसिया, चरकुला, रास, रासक, भक्ति आन्दोलनों की प्रेरणाएं लिए रही हैं क्योंकि इनके मूल झूला, फेरा, डांगरिया आसन, रणासो, उड़ीसा के डंडानाट, में देव अथवा भगवन्त लीलाएं मुख्य हैं। यहां - रामलीला, लागुड़ा, केलाकेलूनी, घंटा पटुआ, छाऊ व घूमरा, पश्चिमी रासलीला, समकालिक लीला, नरसिंह लीला, समया, बंगाल के गंभीरा, रायबेश, ढाली, जात्रा, पालागान, असम के रासधारी, गरासियों की गौर लीला, भीलों की शिवलीला बीहू, दुलिया, भंवरिया व खुलिया, मणिपुर के लाइहारोबा, अथवा गवरी आदि।
माइबा, रास, संकीर्तन च चौलम जैसे कई नृत्य यह बताते लोकनृत्य
हैं कि लोक जीवन इन नृत्यों को एक सशक्त माध्यम के रूप लोकनृत्य लोक माध्यमों की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण है। में रंजन और शिक्षण का आधार बनाये हए हैं। ये लोक जीवन के उल्लास की सशक्त अभिव्यक्ति है और
विद्वत् खण्ड/३८
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org