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0 अभिषेककुमार उपाध्याय, ६ ग
में नमाज पढ़ने गए हैं। फकीर मस्जिद की ओर चल दिया। वहाँ पहुंचने पर फकीर ने देखा कि बादशाह नमाज समाप्त करते हुए अल्लाह से हाथ जोड़कर कह रहे हैं-“हे अल्लाह! मुझे इतना धन
और साम्राज्य दो कि मैं और ज्यादा शक्तिशाली बन जाऊँ।" फकीर ने बादशाह को इस प्रकार अल्लाह से दुआ माँगते देखा तो वहाँ से चले जाना ही ठीक समझा। बादशाह ने फकीर को जाते देखकर कहा, "फकीर साहब! आप इतनी जल्दी क्यों चल दिए? मुझसे कोई काम था क्या?" फकीर ने जवाब दिया, "हाँ हुजूर! काम तो था, लेकिन अब नहीं है।" बादशाह बोला, "ये आप क्या अजीब बात कर रहे हैं?" “हुजूर!'' फिर फकीर ने उत्तर दिया "मैं आपको बादशाह समझकर कुछ धन माँगने आया था मगर आपको खुद अल्लाह से भीख माँगते देखा, तो मैंने सोचा कि जो आदमी खुद अल्लाह से भीख माँग रहा हो वह भला दूसरों को क्या देगा। आप तो मेरी ही तरह भिखारी हैं। इसलिए मैं भी उसी अल्लाह से माँगूंगा जिससे आप माँग रहे थे।"
भिखारी बहुत दिन पहले की बात है। दिल्ली में एक फकीर रहता था। अल्लाह की बंदगी के अलावा उसको दूसरा कोई काम नहीं था। उसके पास कुछ भी नहीं था, फिर भी वह हमेशा खुश रहता था। एक बार राज्य में अकाल पड़ गया जिससे लोगों को बहुत कष्ट हुआ। उसने सोचा कि बादशाह से कुछ धन माँगकर जलाशयों का निर्माण कराया जाय। धन के लिए फकीर बादशाह के महल की
ओर चला। महल में जाने पर उसे पता चला कि बादशाह मस्जिद
नेहा मालू, नवम् अ
विद्यालय खण्ड/३६
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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