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0 दिग्विजयप्रताप सिंह, ९ अ
0 अमर शाही, १० ब
प्यार करते हैं लालच और नफरत की आँधी है, फोटो में गाँधी है। ऐसे में एक दिन आता है, जब युद्ध जरूरी हो जाता है। नजरें बचाते हुए कहते हैं, युद्ध अब जरूरी है। वह दिन आता है, जब एक जड़ इबारत, भावनाओं की जगह उमड़ती है
और घेर लेती है, एक निनादित नाम । और सामूहिक अहंकार होता है । जब अच्छाइयाँ, बिना लड़े हारती हैं। जब कोई किसी को कुचलताचला जाता है,
और कोई ध्यान नहीं देता है, तब एक दिन आता है, जब सेना के मार्च का इन्तजार करते हैं । बत्तियाँ बुझा लेते हैं, और कहते हैं 'प्यार करते हैं ।
माँ! तुम तो हो महान वीणावादिनी माँ तू शारदे, नित्य करूँ तेरा गुणगान, चरणों में निज मस्तक रखकर, करता रहूँ सदा मैं ध्यान, माँ तुम ऐसा दो वरदान ।
माँ तुम तो हो महान् । सबको देती तू ही विद्या, सबको देती तू ही ज्ञान, जो भी शरण तुम्हारे आया, बना वही विद्वान ।
माँ तुम तो हो महान् । इसीलिए माँ शरण में आया ।
और न ठौर कोई भी पाया । मुझको दे आशीष तू इतना, बना रहे जो दिया है मान ।
माँ तुम तो हो महान् । जीवन अपना राष्ट्र निमित्त हो । चंचल अपना कभी न चित्त हो । आये कठिनाई की बेला, पाऊँ शीघ्र ही सुगम निदान । माँ तुम ऐसा दो वरदान ।
माँ तुम तो हो महान् ।
विद्यालय खण्ड/३८
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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