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० डॉ० नेमिचन्द शास्त्री
झाड़ा। मन में अटूट विश्वास था कि विष अवश्य उतर जायेगा। आश्चर्यजनक चमत्कार यह हुआ कि इस महामन्त्र के प्रभाव से बिच्छू का विष बिल्कुल उतर गया। व्यथा-पीड़ित व्यक्ति हँसने लगा
और बोला-"आपने इतनी देरी झाड़ने में क्यों की। क्या मुझसे किसी जन्म का वैर था? मान्त्रिक को मन्त्र को छिपाना नहीं चाहिए।" अन्य उपस्थित व्यक्ति भी प्रशंसा के स्वर में विलम्ब करने के कारण उलाहना देने लगे। मेरी प्रशंसा की गन्ध सारे गाँव में फैल गयी। भगवती भागीरथी से प्रक्षालित वाराणसी का प्रभाव भी लोग स्मरण करने लगे तथा तरह-तरह की मनगढन्त कथाएँ कहकर कई महानुभाव अपने ज्ञान की गरिमा प्रकट करने लगे। मेरे दर्शन के लिये लोगों की भीड़ लग गयी तथा अनेक तरह के प्रश्न मुझसे पूछने लगे। मैं भी णमोकार मन्त्र का आशातीत फल देखकर आश्चर्यचकित था। यों तो जीवन-देहली पर कदम रखते ही णमोकार मन्त्र कण्ठस्थ कर लिया था, पर यह पहला दिन था, जिस दिन इस महामन्त्र का चमत्कार प्रत्यक्ष गोचर हुआ। अत: इस सत्य से कोई
भी आस्तिक व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता है कि णमोकार मन्त्र मंगलमंत्र णमोकार : एक चिन्तन
में अपूर्व प्रभाव है। इसी कारण कवि दौलत ने कहा है :
"प्रात:काल मन्त्र जपो णमोकार भाई। यों तो इस महामन्त्र का प्रचार सर्वत्र है, समाज का बच्चा-बच्चा अक्षर पैंतीस शुद्ध हृदय में धराई ।। इसे कण्ठस्थ किये हुए है, किन्तु इसके प्रति दृढ़ विश्वास और नर भव तेरो सुफल होत पातक टर जाई । अटूट श्रद्धा कम ही व्यक्तियों की है। यदि सच्ची श्रद्धा के साथ विघन जासों दूर हो संकट में सहाई ।।१।। इसका प्रयोग किया जाये तो सभी प्रकार के कठिन कार्य भी सुसाध्य कल्पवृक्ष कामधेनु चिन्तामणि जाई। हो सकते हैं। एक बार की मैं अपनी निजी घटना का भी उल्लेख ऋद्धि सिद्धि पारस तेरो प्रकटाई।।२।। कर देना आवश्यक समझता हूँ। घटना मेरे विद्यार्थी जीवन की है। मन्त्र जन्त्र तन्त्र सब जाही से बनाई। मैं उन दिनों वाराणसी में अध्ययन करता था। एक बार ग्रीष्मावकाश सम्पति भण्डार भरे अक्षय निधि आई।।३।। में मुझे अपनी मौसी के गाँव जाना पड़ा। वहाँ एक व्यक्ति को तीन लोक मांहिं, सार वेदन में गाई। बिच्छू ने डंस लिया। बिच्छू विषैला था, अत: उस व्यक्ति को जग में प्रसिद्ध धन्य मंगलीक भाई ।।४।।" भयंकर वेदना हुई। कई मान्त्रिकों ने उस व्यक्ति के बिच्छू के विष
मन्त्र शब्द 'मन्' धातु (दिवादि ज्ञाने) से ष्ट्रन (त्र) प्रत्यय को मन्त्र द्वारा उतारा, पर्याप्त झाड़-फूंक की गयी, पर वह विष उतरा
लगाकर बनाया जाता है, इसका व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थ होता है; नहीं। मेरे पास भी उस व्यक्ति को लाया गया और लोगों ने
'मन्यते ज्ञायते आत्मादेशोऽनेन इति मन्त्रः' अर्थात् जिसके द्वारा कहा-"आप काशी में रहते हैं, अवश्य मन्त्र जानते होंगे, कृपया
आत्मा का आदेश - निजानुभव जाना जाये, वह मन्त्र है। दूसरी इस बिच्छू के विष को उतार दीजिए।" मैने अपनी लाचारी अनेक
तरह से तनादिगणीय मन् धातु से (तनादि अवबोधे) ष्ट्रन प्रत्यय प्रकार से प्रकट की पर मेरे ज्योतिषी होने के कारण लोगों को मेरी ।
लगाकर मन्त्र शब्द बनता है, इसकी व्युत्पत्ति के अनुसार- 'मन्यते अन्य विषयक अज्ञानता पर विश्वास नहीं हुआ और सभी लोग। विचार्यते आत्मादेशो येन स मन्त्रः' अर्थात् जिसके द्वारा आत्मादेश बिच्छू का विष उतार देने के लिए सिर हो गये। मेरे मौसाजी ने भी पर विचार किया जाये, वह मन्त्र है। तीसरे प्रकार से सम्मानार्थक अधिकार के स्वर में आदेश दिया। अब लाचार हो णमोकार मन्त्र
मन धातु से 'ष्ट्रन' प्रत्यय करने पर मन्त्र शब्द बनता है। इसका का स्मरण कर मुझे ओझागिरी करनी पड़ी। नीम की एक टहनी
व्युत्पत्ति-अर्थ है- 'मन्यन्ते सत्क्रियन्ते परमपदे स्थिता: आत्मान: वा मँगवायी गयी और इक्कीस बार णमोकार मन्त्र पढ़कर बिच्छू को यक्षादिशासनदेवता अनेन इति मन्त्रः' अर्थात् जिसके द्वारा परमपद में
विद्वत खण्ड/२
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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