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इतिहास के आइने में
अमर चौधरी, नवम् अ
उनकी संख्या बहुत कम थी। समाज में उन्हें प्रतिष्ठा नहीं मिलती थी। इस परिप्रेक्ष्य में धर्म और धार्मिकता को बहुत महत्व दिया जाता था। सभी परम्पराओं में साधुओं की बहुलता थी। शक्ति के उपासक वीतरागता को अनिवार्य नहीं मानते थे। आध्यात्मिक धारा में वीतराग का होना अनिवार्य समझा जाता था।
महावीर भगवान ने उपदेश दिया है कि जीवन की सफलता के दो विशाल स्तम्भ हैं- ज्ञान और शक्ति। आज के वर्तमान युग में यह उपदेश चरितार्थ होता है। आज के युग में वही व्यक्ति सफल होता है जो ज्ञानी होने के साथ-साथ शक्तिशाली भी हो। शक्तिहीन ज्ञान, दयनीय और ज्ञानहीन शक्ति भयंकर होती है। दोनों का योग होने पर दोनों समर्थ और अभय बन जाते हैं। ज्ञान भी पराक्रम का एक अंग है। पराक्रम-शून्य व्यक्ति ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता
और पराक्रम का उचित उपयोग अज्ञानी व्यक्ति नहीं कर सकता। दोनों की सार्थकता दोनों के समन्वय में है।
इस दुनिया में कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन पर हम सहसा विश्वास नहीं करते। हम उन्हीं बातों पर विश्वास करते हैं जिनसे
परिचित हैं। भगवान् महावीर ने कहा है कि 'स्थूल जगत् के साथ
भगवान महावीर स्थूल व्यवहार ही अच्छा है।' जो वर्तमान के लिए सटीक है। यहाँ भगवान महावीर वर्तमान युग में भी उतने ही समीचीन हैं जितना
जो जैसा करता है उसके साथ भी वैसा ही हो, वो यही चाहता है। वे उस समय थे। भगवान महावीर के जीवन का अध्ययन करने पर
चेतना की ज्योति न हो तो कोई व्यक्ति ज्योतिष्मान नहीं हो हम देखेंगे कि उनका समस्त जीवन सत्य की खोज और उसके
सकता। चेतना की ज्योति के साथ-साथ ध्यान एवं संयम की भावना प्रतिस्थापन में ही व्यतीत हुआ। साधना के इतिहास में भगवान जैसे
का होना भी अनिवार्य है। इन दोनों के बिना वह प्रकट नहीं होती। महान तपस्वी विरले ही मिलेंगे। महावीर के सिद्धान्तों में विश्व की
भगवान महावीर की भाषा में जहाँ अहिंसा है वहाँ अपरिग्रह समस्त विचारधाराओं के समन्वय की क्षमता है। भगवान महावीर ने
जुड़ा हुआ है। जहाँ अपरिग्रह है वहाँ अहिंसा जुड़ी हुई है। आज राजकु-गर होते हुए भी सामान्य जाति के दुःखों को नजदीक से
सत्ता और धन के संग्रह से प्रतिहिंसा होती है तब हम सोचते हैं कि समझा था। उनका जीवन सादगी भरा था। आज वर्तमान में हमलोग
हिंसा बढ़ रही है। भगवान की भाषा में यह बढ़ी हुई हिंसा के प्रति व्यवहार के स्तर पर सोचते हैं और प्रवृत्ति तथा निवृत्ति को विभक्त
हिंसा है। आज का चिन्तन महावीर की उस भाषा को दोहरा रहा कर देते हैं। महावीर के जीवन का अध्ययन करने से पता चलता
है कि हिंसा की वृद्धि को रोकने के लिए सत्ता और धन के है कि भारतीय जीवन में पुरुषार्थ की प्रेरणा देने वालों में भगवान
एकाधिकार को रोकना आवश्यक है। महावीर ने इसे रोकने का महावीर अग्रणी हैं।
उपाय बताया था, "हृदय परिवर्तन'। आज के राजनीतिक दार्शनिकों भगवान महावीर को इतिहास के आइने में देखने के लिए हमें
ने इसका उपाय बताया है, 'दंड-शक्ति'। किन्तु दंड-शक्ति का वर्तमान की स्थितियों और महावीरजी के जीवनकाल की स्थितियों का
प्रयोग होने के बाद अब यह विचार बीज अंकुरित हो रहा है कि तुलनात्मक अध्ययन करना होगा। परिवर्तन जगत् की नियति है, ऐसी
जनता का विचार बदले बिना दंड-शक्ति सफल नहीं हो सकती। नियति कि जिसे कोई टाल नहीं सकता है। जहाँ परिवर्तन है वहाँ
इसलिए इतिहास के साथ वर्तमान के लिए भी महावीर का उपदेश उन्नति और अवनति भी आवश्यक है। अर्थात, उतार-चढ़ाव भी
बिल्कुल सत्य है। अनिवार्य है। इस नियति चक्र में कोई भी एकरूप नहीं रह सकता।
महावीर मनुष्य की स्वतन्त्रता का अपहरण नहीं चाहते थे। __महावीर का काल धर्म की प्रधानता का युग था। राजा और
स्वतंत्रता का अपहरण हिंसा है और जहाँ हिंसा है वहाँ समस्या है, प्रजा सब धर्म में विश्वास करते थे। धर्म की सत्ता राज्य की सत्ता
दुःख है। ऐसा महावीर का मानना था। इस दुःख से छुटकारा पाने से ऊपर थी। धर्म को अस्वीकार करने वाले व्यक्ति भी थे। पर
के लिए महावीर ने आत्मानुशासन का सूत्र दिया है। उन्होंने कहाशिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्यालय खण्ड/४९
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