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प्रणवेश मिश्र
को प्रणाम कर लेता हूँ। नगर में प्रवेश से पहले गंगा माता के दर्शन होते हैं, जिन्हें देखने मात्र से मन के सारे मैल धुल जाते हैं एवं शरीर ऊर्जा-स्फूर्त हो उठता है।
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम पौराणिक काल से अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष माघ मास में कुम्भ स्नान में शरीक होने अनगिनत श्रद्धालु यहाँ आते हैं। हाड़ कैंपा देने वाली ठण्ड में भी श्रद्धालुओं की श्रद्धा-भक्ति देखते बनती है। गंगा जल के स्पर्श मात्र से समस्त मानसिक और शारीरिक व्याधि से मुक्ति पाने की कामना लिए धर्मानुरागी अपनी अटूट आस्था का परिचय इस मेले में देते हैं। नये और अपरिचित श्रद्धालु इस स्थान पर पहुँच कर अपना जीवन सार्थक समझते हैं। संगम तट पर अवस्थित अकबर का किला भी अपने मुगलकालीन ऐतिहासिक महत्व की याद दिलाता है।
प्रयाग दर्शन के पश्चात् हम सभी अपने गन्तव्य की ओर अग्रसर हुए। इलाहाबाद से चित्रकूट जाने के दो मार्ग हैं। एक
इलाहाबाद से रीवाँ होते हुए सतना के पास से जिसकी दूरी १९० अनसइया का आर कि.मी. है। दसरा मार्ग इलाहाबाद से सीधे चित्रकट के लिए है मानस प्रणेता सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास की जिसकी दूरी १०० कि.मी. के करीब है। इलाहाबाद से चित्रकूट साधनास्थली चित्रकूट जाने और देखने की मेरी प्रबल कामना बचपन का पहाडी मार्ग प्राकृतिक सम्पदा से सम्पन्न है। बीच-बीच में से थी। पर, ऐसे सुयोग जीवन में बड़े दुर्लभ होते हैं। तमाम कोशिशों पर्वतखण्ड दिखाई पड़ जा रहे थे एवं सड़क के अगल-बगल बहने के बावजूद ऐसे सुयोग सुलभ नहीं हो पाते। मेरी इच्छा कब पूर्ण वाली नदियाँ और नाले भी बड़े मोहक लग रहे थे। जिन्हें सड़क के होगी यह मैं नहीं जानता था। वहाँ जाने की मेरी इच्छा और भी एक किनारे से दूसरी ओर पार करने की दृष्टि से सामान्य धरातल बलवती होती जा रही थी।
से गहरे पुल बने हुए थे। स्थानीय बोलचाल की भाषा में वहाँ के सन् २००१ के शीतावकाश दिसम्बर महीने में अपने पैतृक लोग ऐसे पल को रपट्टा कहते हैं। इलाहाबाद से तीस-चालीस निवास पर पहुँचने का अवसर मिला। वहाँ पहुँचने पर परिवार वालों कि.मी. दक्षिण पश्चिम में जाने के बाद बहुत दूर-दूर पर गाँव के साथ अचानक चित्रकूट होते हुए अनसुइया आश्रम जाने की दिखाई पड़ते हैं, इसलिए दिन में भी सड़क वीरान, सुनसान रहती योजना बन गयी। २९ दिसम्बर को वहाँ जाने का दिन निश्चित हुआ। है। कुछ-कुछ देर बाद कुछेक गाड़ियाँ दिखाई पड़ जाती हैं। खेतिहर चिर प्रतिक्षित कामना मूर्त रूप प्राप्त करने जा रही थी। संचित पुण्य- और मजदर भी बहत कम नजर आते हैं। कहीं-कहीं छोटी पहाड़ियों पूंजी का भण्डार अपने प्राप्य का संयोग पा रहा था। मेरे लिये यह के बीच से सड़क गुजरती है तो मन शान्त हो उठता है। तरह-तरह विशेष गर्व का विषय था, क्योंकि यह मेरी पहली यात्रा थी, जबकि के प्रश्न मन में पैदा होने लगते हैं। इसी तरह मन में तरह-तरह की परिवार के सभी सदस्य वहाँ जाने का सुअवसर प्राप्त कर चुके थे। जिज्ञासा लिए हम सभी आगे बढ़ते जा रहे थे, गन्तव्य निकट आ
२९ दिसम्बर को प्रात:काल हर्षोल्लास के साथ निजी वाहन के रह्य था। द्वारा हमने वहाँ के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में पड़ने वाले धार्मिक- चित्रकूट महत्वपूर्ण जगह होने के कारण जिला बना दिया गया स्थल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। सर्वप्रथम है पर छोटी और अविकसित जगह होने के कारण उसका जिला तीर्थराज प्रयाग में पड़ाव था, जो मेरे लिए विशेष महत्व का स्थान मुख्यालय कर्बी बनाया गया है जो चित्रकूट से करीब १५ कि.मी. है, क्योंकि मेरी शिक्षा का आधार यही नगर है। इसी नगर के की दूरी पर है। इलाहाबाद से जाने पर पहले कर्बी पड़ता है, इसके विश्वविद्यालय का मैं स्नातक हूँ। जब कभी इस नगर के इर्द-गिर्द बाद चित्रकूट आता है। कर्बी भी दूसरी जगहों की तुलना में छोटा होता हूँ अध्ययन काल के बिताये हुए दिन अनायास ही स्मृति पटल शहर है, पर उस इलाके का बड़ा शहर होने के कारण जिला पर उभर जाते हैं। इसी बहाने तीर्थराज एवं शिक्षा की प्राचीन नगरी । मुख्यालय बनने का गौरव प्राप्त कर सका है। कर्बी शहर से जैसे
विद्यालय खण्ड/५४
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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