________________
0 प्रतीक रतावा, ९ ग
गौरव पाठक, ६ अ
आ गई परीक्षा
मेरी नजर में १. कब्रिस्तान - दुनिया का अंतिम स्टेशन । २. चाय
कलियुग का अमृत । ३. पेन
कागज की सड़क पर दौड़ने वाला इंजन । ४. सर्प
भगवान शंकर का नेकलेस । ५. पश्चाताप अपराध धोने का साबुन । ६. चिंता
मोटापा कम करने की दवा । ७. चोर
रात का शरीफ व्यापारी । ८. पाकेटमार - जेब का भार कम करने वाला ।
लो सिर पर आ गई परीक्षा,
मस्ती सब खा गई परीक्षा । जैसे कोई भूत आ गया,
रूखे सूखे बालों वाला । काली-काली आँख दिखाता,
पिचके-पिचके गालों वाला । डर बनकर आ गयी परीक्षा,
लो सिर पर आ गई परीक्षा । झुक गई गर्दन, कमर भी टेढ़ी,
पैरों पर चढ़ गयीं चीटियाँ । अकल थक गयी दौड़ भागकर,
कानों में बज रहीं सीटियाँ । बन्द रेडियो, बन्द सिनेमा,
। खेल-कूद को जेल हो गई। अक्षर की पटरी पर चलती,
आँखें विद्युत मेल हो गईं। कमजोरी ला गयी परीक्षा,
लो सिर पर आ गयी परीक्षा ।
क्रोध
घमंड प्रायश्चित लालच रिश्वत चिंता
जरा सोचिये बुद्धि को खा जाता है। ज्ञान को खा जाता है। पाप को खा जाता है। ईमान को खा जाता है। इन्साफ को खा जाती है। आयु को खा जाती है।
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्यालय खण्ड/३९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org