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० रंजन राठी, सप्तम् 'स'
का मेहमान बनाकर ले गये। वहाँ उसने मुझे सुन्दर भोजन करवाया। इन्द्राणी स्वयं पंखा झल रही थी एवं इन्द्र मेरे मुँह में कौर डाल रहे थे। इतनी ही नहीं, जब विष्णु को इस बात का पता चला तो वे भी मेहमानवाजी के लिये मुझे बैकुण्ठ ले गये। फिर शंकरजी मुझे कैलाश ले गये। ऐसा स्वप्न तू क्या, तेरे बाप-दादा व तेरी इक्कीस पीढ़ी के लोग भी नहीं देख सकते। लाओ, खीर।" नौकर ने कहा सेठजी मेरा भी स्वप्न सुनिये। रात्रि को सपने में मेरे गुरुजी आये। बड़ी-बड़ी दाढ़ी, बड़ी-बड़ी आँखें, डंडा दिखाते हुए उन्होंने कहा "बेवकूफ कहीं के। खीर वहाँ खराब हो रही है और तू यहाँ खरटि भर रहा है। चल उठ और खीर खा।'' । ___मैं कुछ देर चुप रहा। फिर गुरुजी ने लाल-लाल आँखें दिखाते हुए कहा "मूर्ख कहीं के! खीर खाता है कि डंडा?'' ___ मैंने डर के मारे खीर खाना कबूल कर लिया। मैं तुरन्त गया रसोईघर में और खीर खाने लगा....मजेदार, स्वादिष्ट खीर.. ऐसी खीर मैने जिंदगी में पहली बार खायी थी..अहाहा! फिर पतीली मांज धोकर रख दी। वह देखिये पतीली, चम-चम चमक रही है।
तब सेठजी ने कहा "यह तुम्हारा स्वप्न था कि हकीकत?" "स्वप्न नहीं हकीकत ही थी।" "यह कैसे संभव हुआ"
"मैंने गुरु बना रखे हैं। उन्होंने ही मुझे ऐसा करने के लिये कहा"
"उस वक्त मुझे क्यों नहीं बुलाया?"
"उस वक्त आप तो सम्राट बने हुए थे। मैं बुलाने गया किन्तु वहाँ मुझ गरीब को कोई आने नहीं दिया क्योंकि आपकी सुरक्षा कड़ी थी. और बाद में आप इन्द्रपरी में, बैकण्ठ में और कैलाश में मेहमानवाजी मना रहे थे। मैं गरीब नौकर भला वहाँ कैसे पहुँचता?
आपको इन्द्रपुरी में इन्द्र की मेहमानवाजी मुबारक हो? विष्णु और शिवजी की मेहमानवाजी मुबारक हो। मैने तो यहीं पर खीर खाकर अपनी भूख मिटा ली।"
खीर खाता है कि डंडा एक सेठ व्यंजनों के बड़े शौकीन थे। एक दिन उन्होंने अपने नौकर को खीर बनाने के लिये केसर, पिस्ता, काजू, बादाम आदि देते हुए कहा : “बढ़िया खीर बनाकर रखना। मैं अभी घूमकर आता हूँ।"
यह कहकर सेठ घूमने के लिये निकल पड़ा। रास्ते में उन्हें एक मित्र मिल गये। सेठ ने पूछा-“कहाँ जा रहे हो?'' मित्र के यह कहने पर कि वह शादी की दावत में जा रहा है। चलना हो तो तुम भी चलो। व्यंजनों का शौकीन सेठ उसके साथ चल दिया। सेठ गले तक भोजन चढ़ा कर घर वापस आया। घर पर स्वादिष्ट खीर तैयार थी किन्तु पेट में जब जगह हो तब तो खाये।
सेठ ने सोचा यदि नौकर से बता दूँगा कि भरपेट दावत खाकर आया हूँ तो सारी खीर वही चट कर जायेगा। सेठ ने युक्ति लगाई और कहा "अभी खीर खाने की इच्छा नहीं है। चलो, अभी सो जाते हैं। रात में जिसका स्वप्न सुन्दर होगा, वह सुबह खीर खायेगा।"
सुबह हुई। दोनों उठे। सेठ ने कहा, "लाओ खीर।" नौकर के यह कहने पर कि पहले अपना स्वप्न तो सुनाइये। सेठ ने कहा कि खीर तो मुझे ही मिलेगी क्योंकि मुझसे सुन्दर स्वप्न तू देख ही नहीं सकता। इसलिये खीर ले आ और मुझे खाने दे। नौकर के फिर से कहने पर सेठ ने कहा : "मैं सपने में भारत का सम्राट बन गया था। इन्द्र को जैसे ही इस बात का पता चला तो वे मुझे इन्द्रपुरी
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्यालय खण्ड/२९
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