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रत
रामअधीन सिंह
का दुरुपयोग करती हैं जिससे उस परिवार का बजट सामान्य से असामान्य हो जाता है और परिवार को कर्जकाछूत अवश्य छू लेता है।
"तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर" यह कहावत इन ग्रामीणों को कभी नहीं सुहाती है। मुन्डन- प्रायः प्रत्येक बच्चे की पहले बार बाल कटवाने की प्रक्रिया है जिस पर सामान्य ग्रामीण कई हजार रुपये खर्च कर देता है और बच्चे के अच्छे भाग्य की कल्पना के लिए उधार लेकर भी पैसा खर्च करने में ग्रामीण जरा भी संकोच नहीं करता है। खेत मजदूरों की आर्थिक स्थिति वास्तव में दयनीय है। उन्हें पूरे वर्ष खेती में काम नहीं मिलता है। खाली समय किस प्रकार वे कुटीर उद्योगों में लगाएँ कि उन्हें उनके श्रम का उचित मूल्य मिल सके, इसका ज्ञान न होने के कारण उनका जीवन स्तर और गिर जाता है। __ मद्यपान उनकी बहुत बड़ी कमजोरी है जिससे सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के अनेक प्रयासों के बावजूद उनकी स्थिति नहीं सुधरती है और वे कर्ज से नहीं उबर पाते हैं। गाँव के किसानों की गरीबी का दूसरा कारण दहेज, अशिक्षा और उनकी नई पीढ़ी
का श्रम से परहेज करना है। अन्य सम्पन्न लोगों की बराबरी करने भारतवर्ष में बढ़ते पाँच सितारा होटलों की संख्या, बढ़ते वायुयान में दहेज देने या लेने में ग्रामीण गर्व का अनुभव करता है और यात्रियों की संख्या, प्रत्येक कस्बे और शहर में बढ़ती शराब की दुकानों कहता है कि शादी-विवाह रोज-रोज नहीं होते हैं इसलिए दिल खोल की संख्या भारत की गरीबी का परिचय देती हैं। किसी भी शहर या कस्बे __ कर खर्च करो ताकि लोगों को लगे कि सामाजिक आदमी है। की सड़कों से गुजरने वाले वाहनों की संख्या भी भारत की गरीबी को जिसको कई गाँवों के लोग जानते हैं। शिक्षा पर खर्च कभी भी कोई प्रदर्शित करते हैं। शहरों की बहुमंजिली इमारतें और महल तथा फिजूल खर्च नहीं मान सकता है लेकिन गाँवों और छोटे कस्बों में सरकारी और गैर-सरकारी दफ्तरों के पास खुली कॉफी, चाय की दुकानें खुलने वाले अंग्रेजी स्कूल में छात्रों को टाई बाँध कर जाना अनिवार्य तथा फास्टफुड स्टालों से भी भारत की गरीबी परिलक्षित होती है। शादी है और पाँच साल के बच्चे के पीठ पर पाँच किलो का बस्ता और विवाह के अवसर पर आयोजित भव्य समारोहों से भी भारत की निर्धनता २००रु से २५०रु प्रति माह फीस मेरी समझ से फिजूल खर्च है। कोआँका जा सकता है। देश की सत्तर प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है इन स्कूलों में जाने वाले गरीब या सामान्य परिवार के बच्चों की जिसमें किसान, किसान मजदूर, धोबी, लोहार तथा अन्य पेशे से जुड़े शिक्षा अधूरी रह जाती है। ऐसे बालक ठीक ढंग से न तो मातृभाषा लोग रहते हैं जो शहरों में निवास के लिए उत्सुक रहते हैं, उनकी गरीबी सीख पाते हैं और न अंग्रेजी भाषा का बोझ उठा पाते हैं। परिणाम के बारे में सोचा जाय तो स्पष्ट पता चलता है कि उनकी गरीबी का कारण यह होता है कि किसी प्रकार कक्षा ६-७ तक पढ़ने के बाद स्कूल प्रचलित कुरीतियाँ और प्राप्त साधनों का समुचित उपयोग न करना है। छोड़ देते हैं। यदि ये बच्चे मुफ्त शिक्षा देने वाले सरकारी या गैरशादी-विवाह के अवसर पर खेत मजूदर अधिक से अधिक बारात सरकारी संस्थानों में गये होते तथा तनिक भी स्नेह के साथ इन्हें बुलाता है, नाच-तमाशा तथा दिखावे पर अपनी सामर्थ्य से कई गुना उत्साहित किया गया होता तो अवश्य शिक्षित हो जाते। अधिक धन खर्च करके अपने लिए गरीबी को सहज ओढ़ लेता है और शिक्षा किस माध्यम से दी जाय, यह विवाद का विषय हमारे भाग्य को कोसता है। वह बराबर भाग्य के सहारे अच्छे दिन आने की देश में है। प्रायः प्रत्येक सरकार अपनी आय का काफी हिस्सा उम्मीद में गरीबी रेखा के नीचे बड़े चैन से जिन्दगी जीने के लिए विवश हो शिक्षा पर खर्च करती है लेकिन उसका प्रतिफल बहुत ही नगण्य जाता है। शादी विवाह के अलावा अनेक पूजा-पाठ में भी सामान्य है। ऊँचे वेतनमान पर नियुक्त अधिकारी या अध्यापकगण अपने आर्थिक स्थिति का ग्रामीण धन खर्च करने से नहीं चूकता है। गृहणियाँ अधिकारों की रक्षा के लिए संगठन बना लेते हैं और राजनैतिक किसी मन्दिर या देवस्थान पर पूजा करने के लिए ऑटोरिक्शा,जीप या दलों के माध्यम से प्रान्तीय सरकारों को डाँवाडोल कर देने की भाड़े की कार द्वारा पूरे बाल बच्चों के साथ जाती हैं और मनौती पर धन क्षमता वाला संगठन बना कर उन्हें (इन सरकारों को) उनके विरुद्ध
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्यालय खण्ड/१७
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