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को स्वीकार नहीं करता। जैसे-अनन्त काल से पुद्गल और आत्मा का संबंध चला आ रहा है पर पुद्गल कभी आत्मा नहीं बनते और आत्मा कभी पुद्गल नहीं बनती। द्रव्य में अगुरुलघुत्व नामक ऐसा गुण है, जो उन्हें अपनी सीमा को छोड़कर दूसरे द्रव्य की सीमा में जाने नहीं देता।
विश्व के समस्त पदार्थों में उपर्युक्त ये छहों गुण समान रूप से पाए जाते हैं। सबमें समान रूप से पाए जाने के कारण ही इन्हें सामान्य गुण कहा जाता है। 2. विशेष गुण
जो गुण समस्त द्रव्यों में समान रूप से उपलब्ध नहीं होते, वे विशेष गुण कहलाते हैं। विशेष गुण हर पदार्थ का अपना-अपना होता है। उसका किसी दूसरे पदार्थ में संक्रमण नहीं होता। जैसे-गति में सहायता करना धर्मास्तिकाय का विशेष गुण है। यह अधर्मास्तिकाय द्रव्य में नहीं पाया जाता। विशेष गुण सोलह प्रकार के हैं1. गतिहेतुत्व
१. ज्ञान 2. स्थितिहेतुत्व
10. दर्शन 3. अवगाहहेतुत्व
11. सुख 4. वर्तनाहेतुत्व
12. वीर्य 5. स्पर्श
13. चेतनत्व 6. रस
14. अचेतनत्व 7. गन्ध
15. मूर्त्तत्व
16. अमूर्त्तत्व। 1. गतिहेतुत्व-गति में सहायता करना धर्मास्तिकाय का विशेष गुण है। धर्मास्तिकाय के अभाव में कोई भी पदार्थ गति नहीं कर सकता।
8. वर्ण