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धर्मो गुणः। द्रव्य के सहभावी धर्म को गुण कहते हैं। सहभावी धर्म द्रव्य से कभी अलग नहीं होता। आचार्य उमास्वाति ने गुण को परिभाषित करते हुए लिखा-द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः अर्थात् गुण द्रव्य के आश्रित होते हैं पर गुण स्वयं निर्गुण होते हैं। गुण में गुणों का सद्भाव नहीं होता। उदाहरण के लिए जल द्रव्य है और शीतलता उसका गुण है। पर यदि कोई पूछे शीतलता का गुण क्या है तो यही कहना होगा कि शीतलता स्वयं गुण है और गुण का गुण नहीं होता अतः गुण स्वयं निर्गुण है। गुण के प्रकार
गुण के दो प्रकार हैं1. सामान्य गुण
2. विशेष गुण 1. सामान्य गुण ... सभी द्रव्यों में समान रूप से पाया जाने वाला गुण सामान्य गुण है। जैसे-संसार के जितने भी मनुष्य हैं, उनमें पाया जाने वाला मनुष्यता समान्य गुण है। सामान्य गुण के छह प्रकार बताये गये हैं
1. अस्तित्व, __2. वस्तुत्व,
3. द्रव्यत्व, 4. प्रमेयत्व, 5. प्रदेशवत्व, 6. अगुरुलघुत्व,
1. अस्तित्व-अस्तित्व गुण के कारण द्रव्य का कभी विनाश नहीं होता। तीनों कालो में उसका अस्तित्व बना रहता है। इस