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जैन पूजा पाठ सग्रह
श्री देव शास्त्र गुरु, विदेह क्षेत्र विद्यमान वीस तीर्थकर तथा
अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठी पूजा दोहा—देवशास्त्र गुरु नमनकरि, बीस तीर्थङ्कर ध्याय ।
सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमूं चित्त हुलसाय ॥ ___ॐ ह्री श्री देवशास्त्रगुरु समूह । श्री विद्यमान विंशति तीर्थकर समूह । श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठि समूह । अत्रावतरावतर सवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापनम् । अत्र मम सत्रिहितो भव भव वषट् सत्रिधीकरणम् ।
अष्टक चाल-करले-करले तू नित प्राणी श्री जिन पूजन करले रे । अनादिकाल से जग मे स्वामिन् जलसे शुचिता को माना। शुद्धनिजातम सम्यक् रत्नत्रयनिधि को नहि पहिचाना ॥ अब निर्मल रत्नत्रय जल ले देव शास्त्र गुरु को ध्याऊँ। विद्यमान श्री बीस तीर्थङ्कर सिद्ध प्रभु के गुण गाऊँ।
ॐ ही श्रीदवशास्त्रगुरुभ्य, श्री विद्यमान विशति तीर्थकरेभ्य, श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठिम्यो, जन्ममृत्युविनाशनाय जल निर्वपामोति स्वाहा ।। २।। भव आताप मिटावन की निज मे ही क्षमता समता है। अनजाने अबतक मैंने पर में की झूठी ममता है। चन्दन सम शीतलता पाने श्री देव शास्त्र गुरु को ध्याऊँ। विद्यमान श्री वीस तीर्थङ्कर सिद्ध प्रभु के गुण गाऊ ॥