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किया गया मालूम होता है। विद्वज्जनबोधक किस सालमे बनकर तय्यार हुआ है, यह बात उसके देखनेसे मालूम हो सकती है। ___ पर यह वात निसदेह कही जा सकती है कि इस टीकाके बनानेवाले हलायुधजी संघी पन्नालालजीके समकालीन थे, जयपुर या उसके निकटवर्ती किसी ग्रामके रहनेवाले थे और उन्होंने विक्रम सं० १९३० से १९४० के दरम्यानमे ही इस टीकाको बनाया है।
हलायुधजीने अपनी इस टीकामें स्थान स्थान पर इस बातको प्रगट किया है कि यह 'श्रावकाचार' सूत्रकारं भगवान् उमास्वामी महाराजका बनाया हुआ है । और इसके प्रमाणमें आपने निम्नलिखित श्लोक पर ही आधिक जोर दिया है। जैसा कि उनकी टीकासे प्रगट
" सूत्रे तु सप्तमेप्युक्ताः पृथक् नोक्तास्तदर्थतः ।
अवशिष्टः समाचार: सोऽत्र वै कथितो ध्रुवम् ॥ ४६२॥" टीका-" ते सत्तर अतीचार मै सूत्रकारने सप्तम सूत्रमे कह्यो है ता प्रयोजन तैं इहा जुदा नहीं कहा है। जो सप्तमसूत्रमें अवशिष्ट. समाचार है सो यामैं निश्चय कर कह्यो है । अब याकू जो अप्रमाण करै ताकं अनंतसंसारी, निगोदिया, पक्षपाती कैसे नहीं जाग्यो जाय जो विना विचारया याका कर्ता दूसरा उमास्वामी है सो याकू किया है ( ऐसा कहै)। सो भी या वचन करि मिध्यादृष्टि, धर्मद्रोही, निंदक, अज्ञानी' जाणना! ॥" ।
इस श्लोकसे भगवदुमास्वामिका ग्रन्थ-कर्तृत्व सिद्ध हो या न हो; परन्तु इस टीकासे इतना पता जरुर चलता है कि जिस समय यह टीका लिखी गई है उस समय ऐसे लोग भी मौजूद थे जो इस 'श्रावकाचार' को भगवान् उमास्वामि सूत्रकारका बनाया हुआ नहीं मानते.