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असुर-वनिपाल राजाके राजमहलमें एक बड़ी भारी लायब्रेरी मिली है। लायब्रेरीमें ईटोपर लिखे हुए कई हजार फलक हैं। इनके पढ़नेसे मालूम "होता है कि ये दूसरे फलकोंपरसे किये गये हैं। अर्थात् इसके पहले भी इन लिपियोका साहित्य था । इन फलक लिपियोंमें जुदा जुदा प्रसिद्ध भाषाओंका साहित्य, अंकशास्त्र, पशु पक्षी, वनस्पतियोंकेनाम, भूगोल वृत्तान्त, और पौराणिक कथायें सगृहित हैं। ये फलक बड़ी सावधानीसे संरक्षित करके रक्खे गये हैं। इनके सिवा और प्रसिद्ध प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थानोंकी तथा शिल्पादि वस्तुओंका आविष्कार हुआ है जिससे बड़े ही महत्वकी बातें मिली हैं, बहुतसे मकान और वस्तुयें तो ऐसी मिली हैं जो वाइविल बननेके पाच हजार वर्ष पहलेकी बतलाई जाती हैं। इसकी ऐतिहासिक पंडितोमें बड़ी चर्चा है। इतिहास हमको धीरे धीरे बतलाता जा रहा है कि मनुष्य जातिकी सभ्यता जितनी पुरानी बतलाई जाती है उससे बहुत ही पुरानी-अतिशय प्राचीनतम है।
३. चार लाखका महान् दान। बड़े ही आनन्दका विषय है कि जैनसमाजके धनिकोंने समयोपयोगी कार्योंके लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है। इस विषयमें इन्दौरके सेठोंने बड़ी ही उदारता दिखलाई है। पाठकोंको मालूम होगा कि अभी कुछ ही दिन पहले श्रीमान् सेठ कल्याणमलजीने दो लाख रुपयेका दान करके इन्दौरमें एक जैन हाईस्कूलकी नींव डाल दी है। हाईस्कूलका बिल्डिंग-प्राय. पूरा बन चुका है और दूसरी तैयारियाँ खूब तेजीके साथ हो रही हैं। जैनियोंका यह एक आदर्श स्कूल होगा और सुना है कि सेठजी स्वीकृत रकमसे भी इस काममें अधिक रकम लगानेके लिए प्रस्तुत हैं । इधर पालीताणाके अधिवेशनमें श्रीमान् सेठ हुकमचन्दजीने विद्याप्रचारके लिए चार लाख रुपयेकी रकम और