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परन्तु कुंदकुदश्रावकाचारके अन्तमें ऐसी कोई प्रशस्ति नहीं पाई जाती है। दोनों ग्रंथोंके किस किस उल्लासमें कितने और कौनकौनसे पद्य एक दूसरेसे अधिक हैं, इसका सक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
उन पद्योंक
नम्बर जोउन पद्योंके नम्बर उहास
कुदकुदश्रा जो विवेक विलासमें में अधिक अधिक हैं।
न
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कैफियत ( Remarks)
पूर्वाधं,
१ ६३ से ६९/८४ से ९८ तक कुदकुद श्रा० के ये ७१ श्लोक दन्ततक और (१४ श्लोक) वावन प्रकरणके हैं। यह प्रकरण दोनों ७० का
प्रथोंमें पहलेसे शुरू हुआ और बादको भी
रहा है। किस किस काष्ठकी दतोंन कर( लोक)
नेसे क्या लाभ होता है, किस प्रकारसे दन्तधावन करना निषिद्ध है और किस वर्णके मनुष्यको कितने अंगुलकी दतान व्यवहारमें लानी चाहिए, यही सब इन 'पद्योंमें वर्णित है। विवेकविलासके ये १४ श्लोक पूजनप्रकरणके हैं। और किस सम. य, कसे द्रव्योंसे किस प्रकार पूजन करना चाहिए, इत्यादि वर्णनको लिये हुए है।
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२ ,३३,३४,३९ (१ श्लोक) कुदकुद श्रा० के दोनों श्लोकोंमें मूपका(२सोका
दिकके द्वारा किसी वस्नके कटेफटे होनेपर छदाकृतिसे शुभाशुभ जाननेका कथन है। यह कथन कई लोक पहलेसे चल रहा है । विवेकविलासका श्लोक न. ३५ ताम्बू. ल प्रकरणका है जो पहलेमे चल रहा है।
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१लोर) भोजनप्रकरणम एक निमित्तसे आयु
और धनका नाश मालम करनेके सम्बधम।
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