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बहुत कुछ संशोधन और परिवर्तन किया। इस वृत्तान्तसे इस वाक्यकी वास्तविक सार्थकता मालूम होती है कि "उन्नतिका मार्ग विरोधके दाँतोमेंसे होकर है।" जब हम आगे बढे है, तब इस प्रकारके विघ्न और कष्ट आवेंगे ही। विघ्नोसे घवडाना नहीं चाहिए। इस प्रकारके विरोधोंको हमे बुरा भी न समझना चाहिए। क्योंकि इनसे हमारी जीवनी शक्तिका पता लगता है और काम करनेकी शक्तिको उत्तेजन मिलता
९. अनन्त जीवन या दीर्घायुष्यकी प्राप्ति । मथुराके पंचम वैद्य-सम्मेलनमे श्रीयुक्त वैद्य भोगीलाल त्रीकमलालका इस विषयपर एक पाण्डित्यपूर्ण लेख पढ़ा गया था। इस लेखमे वैद्यजीने कई विलक्षण और विचारणीय बातें कहीं है । आप कहते है कि मनुष्योंके लिए मृत्यु स्वाभाविक नहीं है। वैज्ञानिक विद्वानोंका मत है कि यह अभी तक किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं हो सका है कि मृत्यु स्वाभाविक है। ऐसा एक भी कारण शरीरविज्ञान शास्त्र नही बतला सकता, जिससे प्रकृतिके और स्वास्थ्यके नियमोंका अच्छी तरह पालन करनेपर भी मनुष्यको मृत्युके अधीन होना ही पडे। विविध शारीरिक क्रियाओके ऊपर योग्य उपायोके द्वारा कमसे कम इतना अधिकार तो मनुष्य अवश्य प्राप्त कर सकता है कि जिससे अपने शरीरको दधि काल तक जीवित रख सके । मनुष्यका शरीर ऐसे यत्रके समान नहीं है जिसका निरन्तर घर्पण होते रहनेसे क्षय हो जाता है। क्योकि वह निरन्तर ही अपने आपको नवीन बनाता रहता है। हमे प्रतिदिन नया शरीर मिलता रहता है। प्रतिदिन ही हमारी जन्मतिथि है। क्योंकि हमारे शरीरकी क्षय और नवीकरणकी क्रिया कभी नहीं रुकती। अर्थात् मलविसजन और नाकरणकी क्रियाओंमें सामञ्जस्य रखनेसे शरीरका सर्वथा