Book Title: Jain Hiteshi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ ३१८ एक और उदासानाश्रम-इन्दौरके उदासीनाश्रमके अतिरिक्त कुण्डलपुर, जिला दमोहमें एक और आश्रम खुलनेवाला है। उसका नाम होगा ' श्री महावीर उदासीनाश्रम'। लगभग आठ हजारका चन्दा हो गया है। हिन्दीमें विश्वकोप-प्राच्यविद्यामहार्णव वायू नंगद्वनाथन २७ वर्ष लगातार परिश्रम करके वगला भाषाम 'विश्रकोश' तैयार किया है। उसमें लगभग ७ लाख रुपये ग्वर्च हुए हैं ! यह 'इन्साइलोपेडिया ब्रिटानिका' के ढंगका है। अब वाबू नाहबन हिटीमें भी इसी हूँगका 'विश्वकोप' लिखना प्रारंभ कर दिया है। मामिफरपसे निकलेगा। चार्पिक मूल्य चार रुपया है। इसमें भी उतना ही खर्च होगा। पर यह वगलाका अनुवाद न होगा--उसकी केवल सहायता लेकर स्वतन्त्र लिखा जायगा। इसे पर्यायवाची शब्दोंका ही कोप न समझना चाहिए यह ज्ञानका भण्डार है। केवल अकबर शब्दही पर इसमें कई पृष्ठोंका महत्त्वपूर्ण निबन्ध है। हिन्दीका अहोभाग्य है। स्याद्वादपर व्याख्यान-पूनेमें एक संस्था है। उसकी ओरसे प्रतिवर्ष वसन्त ऋतुमें बड़े बड़े विद्वानोंके व्याख्यान होते हैं । इस वर्ष ता० ८ मईको शोलापुर जैनपाठशालाके अध्यापक प० वशीघर शास्त्रीका श्रीयुक्त वासुदेव गोविन्द आपटे वी.ए. के सभापतित्वमें स्याद्वाद' के विषय में व्याख्यान हुआ। सार्वजनिक सस्थाओंमें इस तरहके व्याख्यानोंसे बहुत लाभ होनेकी सभावना है। द्वीपान्तरों में भारतीय सभ्यता-पूर्वकालमें भारतवासियोंने भी दीपान्तरोंमें जाकर अपने उपनिवेश स्थापित किये थे । अभी अभी ऐसे कई द्वीपोंका पता लगा है। जावा (यवद्वीप) में प्राचीन भारतवासियोके वशज अब तक मौजूद हैं। वे यहाँ सरीखी धोती पहनते

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373