Book Title: Jain Hiteshi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 368
________________ चुके है। जिन पाठकोंने उन्हें पढ़ा है वे इस पुस्तककी उत्तमताको जान सकते हैं । हँसी दिल्लगी और मनोरंजनके साथ इसमें ऊँचेसे ऊँचे दर्जे की शिक्षा दी है। देशकी सामाजिक धार्मिक और राजनैतिक वातोकी इसमे बड़ी ही मर्मभेदी आलोचना है। हिन्दीमें तो इसकी जोड़का परिहासमय किन्तु शिक्षा पूर्ण प्रन्थ है ही नहीं, पर दूसरी भाषाओंमें भी इस श्रेणीके बहुत कम अन्य है । एकबार पढ़ना शुरु करके फिर आप इसे मुश्किलसे.छोड़ सकेंगे। मूल्य ग्यारह आने । स्वदेश ( रवीन्द्र थावूकृत), शिक्षा ( रवीन्द्रकृत ) आदि। और कई ग्रन्थ तैयार हो रहे हैं। क्या ईश्वर जगत्का कर्ता है ! , ...... दूसरी बार छपकर तैयार है। इसके लेखक बाबू दयाचन्द जैन वी. एन. इस छोटेसे लेसमें अनेक युक्तियो द्वारा इस बातको सिद्ध किया है कि इस जगतका कोई कर्ता हर्ता नहीं है । ईश्वरको जगतका कर्ता माननेवाले आर्यसमाजी आदि मतावलम्बियोंमें वाटनेके लिए यह ट्रेक्ट बड़ा अच्छा है। मूल्य )॥, सैकड़ा २॥ मंगानेका पता-अजिताश्रम-लखनऊ , मिलनेका पता जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय हीरावाग, पो० गिरगाव-बम्बई।

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